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टिप्पणीयाँ

उनका खयाल है कि आज तो आपके आदेशसे वे शान्त हैं लेकिन आपके अथवा आपके उत्तराधिकारियोंके आदेश किसी दिन भी बदल सकते हैं और स्वयंसेवकोंसे फौजी तौरपर हथियारबन्द होनेके लिए कहा जा सकता है । तब तो सरकारी फौजके खिलाफ स्थायी विद्रोही फौज खड़ी हो जायेगी ।

इस पत्र-लेखकने एक यह भी सुझाव रखा है कि सरकार सशस्त्र क्रान्तिकी अपेक्षा इस अहिंसासे कहीं ज्यादा डरती है । ऐसे लोगोंसे जो बदला लेनेकी कोशिश नहीं करते, दुर्व्यवहार करते-करते पुलिस अफसर थक चुके हैं और उनकी हिम्मत टूट चुकी है । उनमें से कुछ यह मानने लगे हैं :

अहिंसा रूपी दुश्मन तो बड़ा खतरनाक है । हिंसासे हम परिचित हैं और उसकी हमें कोई परवाह नहीं । लेकिन ऐसे आदमीको मारना, जो बदलेमें मारता न हो, अपनेको कितना छोटा बना देता है ।

सचाई यह है कि ये दोनों ही बातें ठीक हैं । सरकार भविष्यसे डरती है और इस बातका प्रबन्ध कर लेना चाहती है कि लोग सशस्त्र विरोधकी ताकत हासिल न कर सकें, साथ ही वह शान्तिपूर्ण शक्ति के तेजी से बढ़ने से भी डरती है । संक्षेपमें, वह चाहती है कि न हम मर्द रहें न औरत । वह चाहती है कि हम नपुंसक बने रहें ।

नपुंसक बनानेका तरीका

भारतमें नपुंसकीकरणके जिस तरीकेका प्रयोग किया जा रहा है, उसका बड़ा सजीव उदाहरण बेलगाँव में मिला है । एक मित्रने मेरे लिए बेलगाँवसे मिली खबरोंका संक्षिप्त विवरण तैयार किया है,जो इस प्रकार है :

बेलगाँवके जिला-अधिकारियोंने असहयोग आन्दोलनको दबानेका एक बड़ा ही मौलिक तरीका निकाला है । पुलिस-सुपरिटेंडेंट श्री हेटरने एक परिपत्र निकाल-कर सभी सब इन्स्पेक्टरोंसे कहा कि वे बल-प्रयोग द्वारा असहयोगका प्रसार रोकें । सब-इंस्पेक्टरोंने अपनी ओरसे परिपत्र भेजकर गाँवोंकी पुलिससे कह दिया कि "असहयोगके पक्ष में भाषण करनेवाले लोगोंको बलात् रोका जाये । उन्हें गाँवोंमें घुसने न दिया जाये और गाँवोंसे निकाल दिया जाये और वक्ताओंको भाषण देने से रोका जाये