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भूमिका

इस खण्डमें १५ दिसम्बर, १९२१ से ३ मार्च, १९२२ तककी सामग्री संगृहीत है । भारतके अहिंसात्मक स्वतन्त्रता संग्रामके इतिहासमें यह अवधि वृष्टिछायाकी अवधि है । ठीक उस समय जब कि हमारे संघर्षकी सफलताकी लहरें ऊँचीसे-ऊँची उठ रही थीं, चौरीचौरामें भीड़ हिंसा कर बैठी और गांधीजीने सविनय अवज्ञा आन्दोलनको तत्काल स्थगित कर दिया । उनका एक यही काम असन्दिग्ध भावसे यह सिद्ध कर देता है कि अहिंसा उनके लिए नीति ही नहीं थी, एक नैष्ठिक सिद्धान्त था ।"आक्रामक कार्यक्रम से बिलकुल पीछे हट जाना राजनीतिक दृष्टिसे भले ही गलत और अबुद्धिमत्ताका काम हो, किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह कदम धार्मिक दृष्टिसे एकदम सही है ।" (पृष्ठ ४४० )

खण्डका प्रारम्भ होता है देशके नाम इस अपीलसे कि सरकार चाहे जितनी गिरफ्तारियाँ क्यों न करे, वह गिरफ्तार होनेवाले स्वयंसेवक और स्वयंसेविकाओंकी संख्या में कमी न पड़ने दे, और अन्त होता है अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्योंके नाम इस अपीलसे कि वे “फौरन संघर्ष शुरू करनेसे सम्बन्धित चीख-पुकार-की ओर ध्यान न दें" बल्कि अपना पूरा ध्यान लगायें “आत्मशुद्धि, आत्मनिरीक्षण और खामोशीके साथ संगठन" (पृष्ठ ५२७) की ओर । इस खण्डकी सामग्री इस निर्णयसे उस निर्णय तक जानेकी प्रक्रियाको स्पष्ट करती है और उससे गांधीजी के मनकी उस हिचकिचाहट और शंकाओंपर प्रकाश पड़ता है जिसके कारण उन्होंने सविनय अवज्ञाका कार्यक्रम अनिश्चित कालके लिए मुल्तवी कर दिया ।

यद्यपि १७ नवम्बरको बम्बईमें जो दंगे हुए थे उससे सार्वजनिक अहिंसात्मक सविनय अवज्ञाके बारेमें देशकी तैयारीके प्रति गांधीजीका विश्वास हिल गया था किन्तु जब सरकारने तमाम नेताओंको अकारण गिरफ्तार कर लिया और असहयोग तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलनोंको दबानेकी दृष्टिसे अन्य दूसरे कदम उठाये, तो गांधीजीके सामने सिवाय इसके कोई चारा नहीं रहा कि वे व्यक्तिगत और सार्वजनिक सविनय अवज्ञाकी योजनाको पुनर्जीवित करें । सरकारकी कार्रवाईको उन्होंने देशके आत्मसम्मान- को चुनौतीके रूपमें स्वीकार किया और देशसे उसका प्रत्युत्तर देनेकी माँग की । २८ दिसम्बर १९२२को अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशनमें बोलते हुए उन्होंने कहा : "मैं शान्तिप्रिय व्यक्ति हूँ ।...पर मैं शान्ति हर मूल्यपर नहीं चाहता । मैं उस तरह की शान्ति नहीं चाहता जो हमें पत्थरोंमें मिलती है; मैं उस तरह की शान्ति नहीं चाहता जो कब्रोरो मिलती है ..." (पृष्ठ १११) । ब्रिटिश शासन दावा तो इस बातका करता था कि वह भारतको क्रमशः उत्तरदायी स्वशासन देनेके लिए उत्सुक है, किन्तु देशकी नई मनःस्थितिको समझना उसके बूतेसे बाहरकी बात थी, क्योंकि देश अब कृपापूर्ण संरक्षण- की बात सुनने के लिए तैयार नहीं था । लॉर्ड रीडिंगके एक भाषणका उल्लेख करते हुए गांधीजीने कहा कि उन्हें “ यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि हम