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टिप्पणीयाँ

सामना करें । और हारकर दम तोड़ती हुई इस शासन-व्यवस्थाके संचालकोंको यह कहना पड़ जाये, "हमने कोशिश तो की लेकिन कामयाबी नहीं मिली ।" जब परवाना शमाके इर्द-गिर्द मँडराने लगता है तब उसका मरण निश्चित होता है । इसी प्रकार यह सरकार भी स्वयं अपनी हिंसाके भारके नीचे दबकर तेजीसे टूक-टूक होती जा रही है। यह जानते हुए भी कि कहीं कुछ छिपाकर नहीं रखा गया है और असहयोग आन्दोलन करनेवालों के पास छिपाकर रखनेको कुछ है भी नहीं, निजी मकानों और सार्वजनिक दफ्तरोंकी तलाशी लेना यदि पागलपन नहीं तो और क्या है ? लेकिन इसमें सन्देह नहीं कि ये तलाशियाँ इसी इरादे ली गई हैं कि लोगोंको जितना भी परेशान किया जा सके, किया जाये । एक पत्र भेजनेवाले ने मुझे लिखा है कि जेलोंमें जगहकी तंगी महसूस होने लगी है । जितनी बड़ी तादादमें रोज कैदकी सजाएँ दी जा रही हैं, जेलके अधिकारी उसके लिए तैयार नहीं थे । बहुतसे कैदियों के लिए न उनके पास जगह है और न काम । इसलिए स्वाभाविक है कि आतंक जमानेके लिए दूसरे तरीके अपनाये जायें । इसलिए अब तो हमें और भी जल्दी-जल्दी ऐसे हमलोंके लिए तैयार रहना होगा । बेंत बरसाये जानेकी खबर अबतक ज्ञात होनेवाली सूचनाओंमें सबसे ज्यादा बुरी है । मैं अब भी यही आशा कर रहा हूँ कि शायद यह खबर सच नहीं होगी । यह खबर मैंने 'ट्रिब्यून' से ली है जो उन सबसे ज्यादा जिम्मेदार अखबारोंमें से है जो भारतके भाग्यसे यहाँ चल रहे हैं । यह खबर मार्शल लॉके दौरान लाहौरमें कोड़ोंसे की जानेवाली अन्धाधुन्ध पिटाईकी याद दिला देती है । पहले उसका भी प्रतिवाद किया गया था लेकिन बादमें उसकी सत्यता मान ली गई । पाठकोंको याद होगा कि कर्नल जॉन्सनने कैद की सजासे काम न चलनेपर निवारक और शीघ्र प्रभाव दिखाने-वाले दण्डके रूपमें कोड़ेका प्रयोग उचित ठहराया था । फिर भी, यह खबर चाहे सच हो था नहीं; हमें बुरीसे-बुरी स्थितिका सामना करनेके लिए तैयार रहना होगा । आजादी के लिए बड़े से बड़ा कष्ट भी कम होगा । आजादीका जितना भारी मूल्य हम अदा करेंगे, वह हमें उतनी ही ज्यादा प्यारी होगी ।

लेकिन बारपेटा के मन्दिरपर कब्जा किया जाना तो कुछ मानीमें और भी बुरा है । यह बड़ा ही गम्भीर, अनावश्यक और भड़कानेवाला कार्य है । मैं लेकिन मेरा यही आग्रह है कि इस प्रकार भड़काये जानेपर भी हमें अहिंसापूर्ण बने रहना है । हमें याद रखना चाहिए कि हमारा व्रत किसी प्रकारकी शर्तों से बँधा नहीं है । हमें हर कीमतपर उसे पूरा करना है । अनधिकार प्रवेश करनेवाला कोई व्यक्ति मन्दिरको अपवित्र नहीं कर सकता । मन्दिरकी पवित्रता तो उसके उपासकोंकी अपात्रताके कारण ही नष्ट हो सकती है । मौलाना अबुल कलाम आजादके शब्दोंमें हमें उस महानतम मन्दिर, अर्थात् भारत-की ओर देखना चाहिए जो हमारे गुलामीके सामने घुटने टेक देनेके कारण इतने वर्षोंसे अपवित्र होता आ रहा है । और जब हम इतने दिनोंसे इस अपवित्रताको सहन करते आ रहे हैं, तो अब इन स्थानीय मन्दिरोंमें अनधिकार प्रवेश और अनधिकारी व्यक्तियों द्वारा उनके दुरुपयोग के फलस्वरूप इनके और भी अपवित्र किये जानेपर

१. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १२८-३२२ ।

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