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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चायक नहीं है ? इसलिए अगर किसीको सम्मेलन के लिए तथा अन्तिम निपटारेके लिए अपनी सच्ची-सच्ची इच्छा जाहिर करने की जरूरत है तो वह सरकारको ही है । सरकार-को ही अपनेको उस रास्तेपर जानेसे बचाना है जिसपर कि दमन उसे ले जा रहा है । असहयोगियोंके सम्मेलनमें शामिल होनेकी आशा करने के पहले सरकारको ही अपने शुद्ध हेतुके विषयमें अपनी प्रामाणिकता सिद्ध कर दिखानी है । जब सरकार ऐसा करेगी तब उसे चारों ओर शान्ति-ही-शान्ति दिखाई देगी । जब सरकार हिंसात्मक कार्रवाइयोंके सिवा दूसरी बातोंका विरोध न कर रही हो, तब असहयोगसे कोई बुराई नहीं हो सकती । दरअसल हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं जिसे बन्द कर देनेकी जरूरत हो । क्या लड़कोंसे फिरसे कहें कि भाई, सरकारी विद्यालयोंमें पढ़ने जाओ ? क्या वकीलोंसे कहें कि आप वकालत शुरू कर दीजिए ? क्या लोगोंसे कौंसिलोंके लिए उम्मीदवार होनेकी सिफारिश करें ? क्या उपाधिधारियोंसे कहें कि भाई अपने खिताब वापस माँग लो ? यह सब कहनेकी आशा हमसे तबतक नहीं की जा सकती जबतक कि कोई निपटारा वास्तव में न हो जाये या उसका आश्वासन न मिल जाये । इन सब बातोंको देखते हुए यह स्पष्ट है कि असहयोगियोंको कुछ भी करनेकी आवश्यकता नहीं है । हाँ, मैं अपनी तरफसे यह जरूर कह सकता हूँ कि यदि सम्मेलन करनेकी सचमुच इच्छा हो तो मैं आक्रामक सविनय अवज्ञा आरम्भ करनेकी सलाह कभी नहीं दूँगा । वैसे मैं इरादा कर ही चुका हूँ कि ज्यों ही इस बातका पक्का विश्वास हुआ कि लोग अब अहिंसाका रहस्य समझ गये हैं, आक्रामक सविनय अवज्ञा छेड़ दूँ; और यहाँ मुझे यह भी कह देना चाहिए कि इन पिछले दस दिनोंकी घटनाएँ यह दिखला रही हैं कि लोग उसकी अपरिमित महिमा अच्छी तरह समझ गये हैं । सो यदि सरकार यह मानती हो कि अब असहयोगी खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं, और अपने लक्ष्यकी सिद्धिके लिए वे असीम कष्ट सहनेको प्रस्तुत हैं तो सरकारको बिना किसी शर्तके ठीक रास्ते-पर आ जाना चाहिए, स्वयंसेवक-संगठनोंको भंग करने तथा सार्वजनिक सभाएँ बन्द करनेकी आज्ञाओंको रद कर देना चाहिए और भिन्न-भिन्न प्रान्तोंके उन तमाम लोगोंको, जिन्हें इस कहने भरकी सविनय अवज्ञाके लिए अथवा असहयोगकी सीमामें आनेवाले किसी भी उद्देश्यके लिए सजाएँ दी गई हैं, छोड़ देना चाहिए। हाँ, जिन्होंने हिंसा - काण्ड किया हो या उसका इरादा किया हो उनकी बात जाने दीजिए । सरकार हिंसा-कांडको अथवा उसकी उत्तेजनाको दबाने के लिए खुशीसे अपनी सत्ताका सख्ती से प्रयोग करे; लेकिन हमारे इस हकको कि हम अपना मत बेधड़क प्रकट करें और तमाम वैध तथा अहिंसात्मक उपायोंसे जनताको शिक्षा देकर लोकमत तैयार करें, किसी तरहका जरा भी धक्का न पहुँचना चाहिए । इसलिए अगर किसीको बिगड़ी बात बनानी है, घोर अन्यायोंका परिमार्जन करना है तो वह सरकार ही है । और तब वह जो सम्मेलन कराना चाहती है वह अनुकूल वातावरण में हो सकता है । मैं यह भी कह दूँ कि जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, मैं ऐसा कोई सम्मेलन नहीं चाहता जिसमें असयोगसे निबटने के उपायों और तरीकोंपर विचार किया जाये । इस अवस्थामें यदि किसी सम्मेलनसे लाभ हो सकता है तो वह ऐसे सम्मेलनसे जिसमें वर्तमान असन्तोषके