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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जानेसे अली भाइयोंको इतना बल मिला है कि उससे उनकी बेड़ियाँ ही मानो कट गई हों । बीच-बीचमें सियालकोट के लोगोंका अविचारपूर्ण व्यवहार-जैसे विघ्न रुकावट पैदा करते हैं । हमारी गिरावटकी वजह यही है । आगा सफदर पकड़े गये इसलिए लोग पागल हो गये । कुछ जेलमें घुस गये । किसीने मजिस्ट्रेटका अपमान किया । जोर-जबरदस्ती करना, अपमान करना और गालियाँ देना हमारे लिए हराम है । अगर ऐसा होनेपर भी लोग भूलें करते रहें तो बेचारा एलची क्या कर सकता है ? लोग उसे बहुत कोंचेंगे तो वह अधिकसे-अधिक त्यागपत्र देकर हिमालय में भाग जा सकता है ।

'नवजीवन' में भूलें

एक दूसरे सज्जन 'नवजीवन' की कई भूलोंकी ओर संकेत करते हैं । मैंने जो जाँच की है उससे पता चलता है कि उन्होंने जो भूलें बताई हैं वे नहीं हुई हैं । तथापि अगर अन्य पाठकों को भी ऐसी गलतफहमी हो तो वह दूर हो जाये इसको ध्यान में रखकर मुझे इतना बता देना चाहिए कि 'नवजीवन' में जितने लेख प्रकाशित होते हैं वे सबके-सब मेरे लिखे नहीं होते । मैं सबकी छानबीन नहीं कर सकता और मैं अपने 'यंग इंडिया' में प्रकाशित लेखोंका अनुवाद भी नहीं करता । भूलें न हों इसके लिए बहुत सावधानी बरती जाती है । मैंने अपनी बुद्धिके अनुसार अच्छेसे-अच्छे अनुवादक ढूँढकर रखे हैं । वे मेरे एक साथी कार्यकर्त्ता हैं । ईमानदारीसे सबके प्रयत्न करनेपर भी कई बार भूलें तो रह ही जाती हैं। एक भाषासे दूसरी भाषामें अनुवाद करना जितना सुगम जान पड़ता है, उतना सुगम नहीं होता । इसके लिए दोनों भाषाओंपर समान अधिकार तथा विषयका ज्ञान होना चाहिए । तभी कुछ हदतक मूलके सही अर्थकी रक्षा हो सकती है । इसी कारण अनुवादकी कीमत मूलकी अपेक्षा बहुत कम होती है । इसलिए पाठकोंको यह जान लेना चाहिए कि 'नवजीवन' में भूल जान-बूझकर नहीं छोड़ी जायेगी और जब कोई पाठक सुधारने लायक कोई भूल बतायेगा तब वह तुरन्त सुधार दी जायेगी ।

शंखध्वनिके साथ

जिस समय देशबन्धु पकड़े गये उस समयका वृत्तान्त जानने योग्य है । उन्हें उनके घरमें ही पकड़ा गया था । शामके चार-एक बजे पुलिस आई । उस समय सब लोग चाय पी रहे थे । उनके सचिव श्री ससमल पुलिससे मिलनेके लिए नीचे उतरे । उन्होंने ज्यों ही अपना नाम बताया, त्यों ही वे पकड़ लिये गये । इसी बीच देशबन्धु दास भी नीचे आ गये ।

"आप मुझे गिरफ्तार करना चाहते हैं ?"

"जी हाँ ।"

१. सम्भवतः वालजी देसाई; किसी समय अहमदाबादके गुजरात कालेजमें अंग्रेजीके प्राध्यापक; वे नौकरी से त्यागपत्र देकर गांधीजीके पास आ गये थे; बादमें उन्होंने सत्याग्रह इन साउथ अफ्रिकाका अनुवाद किया था ।