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टिप्पणीयाँ

गई है । उन्होंने तीन भयोंका वर्णन भी इसी प्रकार किया है । वे कहते हैं, "हमने जेलके भयको जीत लिया है ।" कौन जानता है कि उन्होंने ये शब्द अपने लड़केको ही ध्यानमें रखकर कहे हों । " दूसरे प्रकारका भय मारका भय है । हम इसे जल्दी ही जीतनेकी स्थिति में हैं ।" तीसरा भय गोलीका है जब हम इसे जीत लेंगे हमें तभी स्वराज्य मिल जायेगा । स्वराज्यकी कुंजी ही इसमें निहित है । यदि हम मारने और मरनेके भयको त्याग दें तो हमें न तो सरकार दबा सकती है और न मवाली दबा सकते हैं । और हम तभी स्वराज्य प्राप्त कर सकते हैं जब हमें इस त्रिविध भयको जीतनेवाले लोग मिल जायें; अन्यथा हमें स्वराज्य कदापि नहीं मिलनेवाला है ।

वचन भंग

एक सज्जन लिखते हैं :

यह तो सीधा न्याय कहा जायेगा । अन्तर सिर्फ इतना ही है कि मैंने यह वचन कोई अपनी सत्ताके बलपर नहीं दिया था । मैं तो जनताका दास हूँ, उसका एलची, गुमाश्ता हूँ । गुमाश्ता अपनी ओरसे कोई वचन दे ही नहीं सकता । इसलिए यदि अली बन्धु और उनके साथी ३१ दिसम्बरतक नहीं छूटेंगे तो मैं उपर्युक्त सज्जनको तथा जनताको दोषी ठहराऊँगा । मैं बम्बईकी जनतापर आरोप लगाऊँगा कि जिस प्रजा-ने मेरे सैकड़ों भाषणोंको सुना उसीने मुझे धोखा दिया है । मैंने तो १७ तारीखको जो जन-समूह देखा, जो आग देखी उसे सत्य मानकर ही यह कहा था कि "आज संध्याको मैं बारडोली और आनन्दकी परीक्षा लेने जाऊँगा और मुझे उम्मीद है कि हम वहाँ सविनय अवज्ञा होते तथा आपके द्वारा शान्ति रखे जाने के फलस्वरूप दिसम्बर के मध्यमें स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे और जेलके दरवाजोंको खोलकर अली बन्धुओं, गंगाधर-राव देशपाण्डे और अन्य सज्जनोंका स्वागत करेंगे ।" मैंने तो यह बात बम्बई तथा हिन्दुस्तानपर विश्वास रखकर कही थी । यदि अली बन्धु इसी महीने नहीं छूटेंगे तो समस्त हिन्दुस्तान विश्वासघाती ठहरेगा । उसमें आप भले ही मेरी भी गिनती करें । भले ही आप ऐसा विश्वास रखनेपर मुझे भोला मानें । लेकिन मैं ऐसा विश्वास तो हमेशा ही रखूँगा ।

लेकिन मेरी मान्यता तो ऐसी है कि जो-कुछ हुआ है उससे वचनकी पूर्ति हुई मानी जायेगी । लालाजी, दास, मोतीलालजी, अबुल कलाम आजाद, मुहीउद्दीन, आगा सफदर, जवाहरलाल आदि जो जेलमें गये हैं, क्या यह बात अली भाई और उनके साथियोंको मुक्त करानेके बराबर नहीं है ? उनके साथ अन्य जो सैकड़ों लोग गये हैं वे उन्हें लेने गये हैं । उनके प्रयत्नोंको बल प्रदान करना तो हमारा काम है । यदि हिन्दुस्तान पूर्ण शान्ति रखेगा, लोग स्वेच्छासे गिरफ्तार भी होते रहेंगे एवं ऐसा करते हुए अपने सिर तुड़वायेंगे और मरेंगे तो वे अली भाइयों आदिको अवश्यमेव जेलसे बाहर ला सकेंगे । मैं लेखकको विश्वास दिलाता हूँ कि इन नेताओंके जेलमें पहुँच

१. यह पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है । इसमें लेखकने कहा था, आपने वचन दिया था कि आप ३१ दिसम्बर से पहले-पहले अली बन्धुओंको रिहा करवा लेंगे । यदि आप इसमें सफल नहीं होते तो आपपर भी वचन-भंग करनेका वही आरोप लगेगा जो आपने लॉयड जॉर्जपर लगाया है ।