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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जब हिन्दुस्तानकी बहुत-सी स्त्रियोंमें ऐसी ही हिम्मत आ जायेगी तब हमारी विजय अवश्य होगी । इस महान् जागृतिके समय बह्नोंसे मेरी इतनी प्रार्थना है कि वे अपने भीतर संगठन-शक्ति भली-भाँति विकसित करें । उन्हें भी एक साथ मिलकर काम करना चाहिए । और ऐसा करनेका सरल मार्ग यह है कि वे परस्पर एक दूसरे-की टीका करनेकी बजाय अपने-अपने कार्यों में जुट जायें । जो सेवाको ही सर्वस्व समझता है उसे टीका करनेका अवकाश ही नहीं मिलता ।

पारसी बहनें

मुझे बम्बईसे एक पारसी बह्नका एक पत्र प्राप्त हुआ है जो अत्यन्त दुःखजनक है । इस बहनकी शिकायत कुछ ऐसी है कि उसके मूलकी जाँच करनेमें मुझे समस्त जीवन व्यतीत करने की इच्छा होती है । लेकिन सिर्फ इस बहन के पत्रसे ही यह जाँच पूरी नहीं हो सकती । यदि मेरा यह लेख इस बहन के हाथमें पहुँचे तो मेरी उससे यह विनती है कि यह बहन मुझे अपना नाम-धाम लिख भेजे अथवा मुझसे आकर मिले । मैं इस बहनका नाम कदापि प्रकाशित नहीं करूँगा; लेकिन यदि यह बहन मुझे सारे तथ्य बतायेगी तो मैं उनकी अवश्य जाँच करूँगा और मुझसे जो मदद हो सकेगी सो करूँगा । यदि कोई स्त्री या पुरुष गुमनाम पत्र लिखे अथवा ऐसी कोई बात न लिखे जिससे मामलेकी पूरी जाँच की जा सके तो यह आसानीसे समझा जा सकता है कि उसका कोई उपचार नहीं किया जा सकता ।

जो पारसी बहनें मुझे जानती हैं उनसे भी में विनती करना चाहता हूँ कि वे भी खूब जाँच करें और यदि उन्हें कोई संकटका समाचार मालूम हो तो वे मुझे सूचित करें ।

चाहे कितनी भी सुरक्षित संस्था क्यों न हो फिर भी उसका कोई-न-कोई भाग ऐसा अवश्य रह जायेगा जिसमें अनेक उपाय करनेपर भी अत्याचारको नहीं रोका जा सकता । लंदन, न्यूयार्क, शिकागो और पेरिसमें आज जो अपराध होते हैं और जो अत्याचार गुप्त रूपसे किये जाते हैं हमें उनकी खबर तक नहीं होती, कोई उनकी जांच तक नहीं कर सकता तथा उन स्थानोंकी सर्तक पुलिस भी उनका पता नहीं लगा सकती । मेरी ऐसी मान्यता है कि उपर्युक्त शहरोंमें कितने ही ऐसे अपराध होते हैं जिनकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते । हममें से प्रत्येक भाई-बहनका यह धर्म है कि हम अपनी सेवासे जितने लोगोंके दुःख-निवारणमें हाथ बँटा सकें, बँटायें और उन्हें सहायता देकर अपने कर्त्तव्यका पालन करें । और जिस देशके अधिकांश लोग पराये दुःखोंको अपना दु:ख समझकर उनके निवारणका प्रयत्न करें उस देशमें स्वराज्य है ।

पुलिसपर दोष मढ़नेकी आदत

गुलामीमें रहनेवाले कायर मनुष्यकी ऐसी आदत होती है कि वह चूँकि अपनी भूल स्वीकार करने में डरता है इसलिए हमेशा दूसरोंके दोष ही ढूँढ़ा करता है । बम्बईकी दुःखजनक घटनाके सम्बन्धमें मुझे जितने पत्र प्राप्त हुए हैं उनमें से कुछ पत्र ऐसे हैं जिनमें सब दोष पुलिसके मत्थे मढ़ा गया है ।