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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सरकारी नौकरी छोड़ दी है उसे सरकारी नौकरी न छोड़नेवाले मनुष्यको गालियाँ नहीं देनी चाहिए ।

यदि हम आरम्भ से ही अपना कार्य इस तरह करते तो आज हम उसे पूरा करके बैठ गये होते और देशने आज जितनी प्रगति की है उससे कहीं अधिक प्रगति कर ली होती । तब नरम दलके लोग हमसे अलग रह ही नहीं सकते थे ।

मुझे उम्मीद है कि कोई भी मनुष्य विनम्र व्यवहार करने का मतलब झूठी खुशा-मद करना नहीं समझेगा । विनम्र व्यवहार करनेका अभिप्राय यह भी नहीं है कि हम अपने धर्मके प्रति अपने भावको छिपायें । विनम्र व्यवहारका अभिप्राय तो यह है कि हम अपने धर्मपर आरूढ़ रहते हुए भी दूसरोंके प्रति आदर भाव रखें । मैं तिलक तो लगाऊँ, लेकिन तिलक न लगानेवालेका उपहास न करूँ । मैं पूर्व की ओर मुख करके प्रार्थना करूँ तो इसका अर्थ यह नहीं कि मैं पश्चिमकी ओर मुख करके नमाज पढ़ने-वाले अपने मुसलमान भाईका तिरस्कार करूँ । मुझे संस्कृतका उच्चारण करना आता है इससे मुझे अरबीका उच्चारण करनेवाले की निन्दा नहीं करनी चाहिए । खादीवादी अपनी खादीकी टोपी पहननेके बावजूद सोला हैट पहननेवाले के प्रति सहनशीलता और प्रेमभाव रख सकता है । यदि खादीसे लदा हुआ मनुष्य विदेशी कपड़े पहननेवाले को गालियाँ देने लगे तो वह विदेशी कपड़ोंका सबसे बड़ा प्रचारक सिद्ध होगा । बम्बईके उपद्रवोंसे खादी के प्रचारमें वृद्धि नहीं हुई है । कुछ को तो इस समय खादीमें से दुर्गन्ध आने लगी है ।

यदि हम खादीवादी यह चाहते हों कि समस्त हिन्दुस्तानके लोग खादी पहनने लगें तो हमें विदेशी कपड़े पहननेवाले लोगोंको धैर्यपूर्वक समझाना होगा । हम विदेशी कपड़े की चाहे कितनी ही निन्दा क्यों न करें; लेकिन हम उसे पहननेवाले लोगों के प्रति तो प्रेमपूर्वक व्यवहार ही करें । प्लेग बुरी है लेकिन यदि हम रोगके पीड़ितों-का त्याग करेंगे तो हमें भी प्लेगकी छूत लगनेकी सम्भावना है । हम रोगके नाशकी इच्छा करें, रोगी के नाशकी कदापि नहीं। विदेशी कपड़े पहननेको यदि हम रोग मानते हैं तो हमें इस रोगसे पीड़ितोंकी सेवा करनी चाहिए । क्या विदेशी कपड़े पहनने-वाले हमें रोगी नहीं मान सकते ? भले ही मानें । वैसा होनेपर भी यदि हम एक दूसरेकी सेवा करते रहेंगे तो हम किसी-न-किसी दिन यह जान जायेंगे कि हममें से कौन अज्ञानमें है । किन्तु यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमें धर्म और अधर्मका भेद कभी मालूम ही न होगा ।

जिस तरह सहयोगियों के प्रति विनयका व्यवहार करनेकी आवश्यकता है उसी तरह हमें जेल जानेपर भी विनययुक्त व्यवहार करना होगा । एक ओर जेलके नियमोंका पालन करना तथा दूसरी ओर स्वाभिमानकी रक्षा करना दोनों कामोंको एक साथ निभाना कठिन है । जेलके कुछ नियम स्वभावतः हीनताकी भावना पैदा करनेवाले होते हैं । उदाहरणार्थ जेलकी कोठरीमें रहने के अलावा हमारे लिए और कोई चारा नहीं है । इस तरह जो नियम जेलके अन्य सब कैदियोंपर लागू होता है उसे हमें अवश्य मानना चाहिए । लेकिन इसके साथ-साथ जहाँ हमें नीचा दिखानेकी खातिर ही कुछ किया जाता हो वहाँ हमें दृढ़तापूर्वक उसका विरोध भी करना चाहिए । यदि हम