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२४. सभ्यता

सभ्यता, विनय और नम्रता -- इन गुणोंपर आजकल इतना कम जोर दिया जाता है कि उससे ऐसा लगता है मानो हमारे चरित्रगठनमें उनका कोई स्थान ही न हो । यदि कोई मनुष्य स्थूल ब्रह्मचर्य का पालन करता है तो वह बाजीराव' बनकर सब लोगों की भर्त्सना करता और उन्हें धमकाता है । और हम उसकी इस असभ्यता-को दुधारू गायकी लातके समान सह लेते हैं । इसी तरह यदि कोई मनुष्य सत्य बोलता है तो उसे हम कड़वे वचन कहने की छूट दे देते हैं और जो खादी पहनता है वह खादी न पहननेवाले लोगोंपर धावा बोल सकता है । उसी तरह जो सविनय अवज्ञा करता है वह ऐसा व्यवहार कर बैठता है मानो उसे अविनय करनेकी छूट मिली हुई हो । असभ्योंकी इस सेनाके नायक ब्रह्मचारी, सत्यवादी, खादीवादी अथवा सविनय अवज्ञाकारी कदापि नहीं हैं । ये चारों अपनी-अपनी प्रतिज्ञासे उतने ही अधिक दूर हैं जितनी उत्तर दिशा दक्षिण दिशासे दूर होती है । और हम यह कह सकते हैं कि जहाँ विनय नहीं होती वहाँ विवेकका अभाव होता है और जहाँ विवेकका अभाव होता है वहाँ कुछ भी नहीं होता । विश्वामित्रकी तपस्या तबतक अधूरी ही रही जबतक उन्होंने विनय नहीं सीखी ।

विनय और नम्रता शान्तिकी निशानी हैं । अविनय और उद्धतता अशान्तिकी सूचक हैं । इसलिए असहयोगी अविनयी तो हो ही नहीं सकता । तथापि असहयोगियोंपर सबसे बड़ा आरोप अविनयी और उद्धत होने का ही लगाया जाता है और इस आरोप में बहुत-कुछ सचाई है । असहयोगी होकर हम ऐसा समझने लगते हैं मानो हमने कोई बहुत बड़ा काम कर लिया है, ऐसे ही जैसे कोई मनुष्य अपने कर्त्तव्यका पालन करके यह मान बैठे कि उसे अब मानपत्र लेनेका अधिकार प्राप्त हो गया है ।

ऐसी अविनयसे हमें अपनी लड़ाईमें विजय मिलने में देर होती है क्योंकि जिस तरह विनय रोष और द्वेषको रोकती है उसी तरह अविनय शत्रुताको बढ़ाती है । यदि असहयोगी सहयोगियों के प्रति विनम्रताका व्यवहार करते, उन्हें गालियाँ न देते और उनके प्रति आदर-भाव दिखाते तो इस समय दोनों पक्षोंके बीच जो कटुता उत्पन्न हो गई है वह कभी उत्पन्न न होती और बम्बईमें इसका जो दुष्परिणाम निकला' वह कभी न निकलता । जिन विद्यार्थियोंने सरकारी स्कूलोंको छोड़ दिया है उन्हें स्कूल न छोड़नेवाले विद्यार्थियोंको सताना नहीं चाहिए और न गालियाँ देनी चाहिए, बल्कि उन्हें उनको अपने प्रेमसे जीतना चाहिए । उन्हें उनकी पूर्ववत् सेवा करनी चाहिए । जिस वकीलने वकालत छोड़ दी है उसे वकालत न छोड़नेवाले को चिढ़ाना नहीं चाहिए, अपितु उससे पहले जैसा ही मधुर सम्बन्ध रखना चाहिए । जिसने

१. मराठा साम्राज्यके एक पेशवा अथवा प्रधान मन्त्री ।

२. वहाँ १७ नवम्बर, १९२१ को युवराजके आनेपर दंगा हो गया था; देखिए खण्ड २१ ।