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गहरे घाव

में जरा भी फर्क नहीं पड़ा है । वह ओ'डायरी ठसक अभीतक गई नहीं है । फिर लॉर्ड रोनाल्डशे उन पीटे गये प्रोफेसर साहबको बुलायें, उनसे मीठी-मीठी बातें करें, उन्हें यह आश्वासन भी दें कि अब ऐसा न होने पायेगा तो इससे होना क्या है ? फिर क्या ऐसा न होने पायेगा ? क्या प्रोफेसर साहब फिर न पीटे जायेंगे ? हाँ, यह तो मानी हुई बात है कि इस नाजुक समयमें तो फिर उनपर हाथ न उठाया जायेगा । खुद प्रोफेसर साहब भी विश्वविद्यालयके उस चोगेके भरोसे किसी पदाधिकारीको कुछ दिनोंतक न छेड़ेंगे । किन्तु क्या उस पदाधिकारीके हृदयमें उन प्रोफेसर साहबके प्रति थोड़ा भी आदर है ? वे खुद अपने लिए तो उसके पास गये ही नहीं थे । वे तो अत्याचार पीड़ित मनुष्योंकी हिमायत करने गये थे । क्या वाइसरायके उस आश्वासन-के कारण भविष्य में भारतीयोंकी रक्षा और सम्मान होगा ? बात यह है कि सिपाहियों-को तालीम ही ऐसी दी जाती है, सवाल उसीका है । उसके द्वारा सिपाहीको एक ऐसा क्रूर पशु बना दिया जाता है जिसे यथासमय निरपराध मनुष्योंपर छोड़ा जा सके । आज इतने 'दास' और 'आजाद' इसीलिए जेल गये हैं कि ऐसे अमानवीय और पाशविक अत्याचारोंकी पुनरावृत्ति न होने पाये । उन्होंने जेलका स्वागत इसीलिए किया है कि बुरेसे-बुरे अपराधी के साथ भी ऐसा घृणित अत्याचार न हो, उसके भी स्वाभिमानको कहीं धक्का न लगने पाये । एक संस्थाके हाथसे निकलकर किसी दूसरी संस्थाके हाथमें सत्ता चली जाये, सिर्फ इसलिए वे जेल नहीं गये हैं । वे जो चाहते हैं वह है शासन प्रणाली में आमूल परिवर्तन । जिस बात के लिए लालाजी बरसोंसे अपना शरीर सुखा रहे हैं, जो आरामतलब मोतीलालजी नेहरूकी जीवन-श्वास बन गई है, और जिसकी खातिर वे पूरे फकीर बन गये हैं, वह लॉर्ड रोनाल्डशेकी क्षमा-प्रार्थना-से -- फिर वह चाहे कितनी ही सद्भावपूर्ण क्यों न हो, नहीं बन सकती और न यह लॉर्ड रीडिंगकी मीठी बातोंसे ही तथा उनकी इस निजी चिन्ता और सावधानीसे ही बन सकती है कि अधिकारीगण कानूनकी मर्यादाका उल्लंघन नहीं करेंगे । यह आमूल परिवर्तन तो शान्ति और वीरताके साथ उस कष्टको सहनेसे ही आयेगा जो लोगोंको इस समय भोगना पड़ रहा है और जिसे भोगने के लिए, भगवान्‌की कृपासे, वे अपनेको तैयार भी पा रहे हैं । एक सावधान मित्र, मेरी इस आशावादितापर अंकुश लगाने के उद्देश्य से कहते हैं कि कष्ट सहनेकी तो अभी शुरुआत ही हुई है और अपने अभीष्ट फलकी प्राप्ति के लिए तो हमें आजसे कहीं ज्यादा मूल्य चुकाना होगा । उन्हें लगता है कि उसके लिए तो हमें एकाधिक जलियाँवाला बागों की पुनरावृत्ति के लिए तैयार रहना होगा और इस बार पेटके बल रेंगने के लिए प्रसिद्ध उस गली के कोनोंतक डर के मारे काँपते हुए और अनिच्छापूर्वक नहीं बल्कि बहादुरोंकी तरह प्रसन्न मनसे और अपने कदम दृढ़तापूर्वक रखते हुए जाना होगा और रेंगनेसे इनकार करने के लिए कोड़ोंकी मार खानी पड़ेगी ।' मैं उन मित्रको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे आशावादमें इन सब तथा इनसे भी इतनी खराब बातोंके लिए गुंजाइश है जिनकी कि उन्हें कल्पना तक न होगी । किन्तु साथ ही मैं यह भी वचन देता हूँ कि अगर भारतने शान्ति

१. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १२८-३२२ ।