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२१. तार: श्यामसुन्दर चक्रवर्तीको[१]

[१६ दिसम्बर, १९२१ या उसके पश्चात्]

खाली जगहें भरी जानी चाहिए।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७७३१) की फोटो-नकलसे।

२२. गहरे घाव

१७ दिसम्बर, १९२१

सरकारकी आज्ञाओंको भंग करनेवालों को—चाहे वे छोटे हों या बड़े—कैद करना, उनको साधारण मुजरिमोंकी तरह रखना, उनको कारावासकी सुविधाओंसे भी वंचित रखना, ये सब बातें तो समझमें आ सकती हैं। मैं उसे असद‍्व्यवहार नहीं कहूँगा। अगर हम अपनेसे ऊँचे किसी अधिकारीको, अथवा जिसके अधिकारमें हम थोड़ी देर के लिए भी हों, रुष्ट कर बैठें तो उसकी आज्ञाभंगके लिए हमें सजा मिलना अनहोनी बात नहीं है। किन्तु अगर वह हमारा अपमान करे, हमारे बच्चोंसे जबरन ऐसी बातें कराये जिन्हें हम और वे दोनों बुरी समझते हैं और जिन्हें करनेके लिए हम कानूनन बाध्य नहीं हैं, या हमारे साथ ऐसा बरताव करे जैसे हम बिलकुल नाचीज हों, तो यह हमें कभी बरदाश्त नहीं हो सकता। कहते हैं कि कोकोनाडामें एक मजिस्ट्रेटने स्वराज्य और खिलाफत के झंडों को उखड़वा डाला, उसने यह हुक्म जारी किया कि एक सप्ताह तक ऐसे झंडे न लगाये जायें। यह भी सुनते हैं कि एक पाठशालाके बालकोंसे यूनियन जैकको जबरदस्ती सलाम कराया गया। हमने यह भी पढ़ा है कि कलकत्ता के एक विख्यात प्रोफेसर अपना चोगा पहने बाहर जा रहे थे; उन्होंने देखा कि सिपाही कुछ निरपराध व्यक्तियोंका पीछा कर रहे हैं उन्हें बड़ी निर्दयतासे पीट रहे हैं। वे प्रोफेसरका चोगा तो पहने ही थे सो उसके भरोसे ऐसा मानकर कि उनकी बात ध्यानसे सुनी जायेगी वे अधिकारीके पास पहुँचे और उससे उन्होंने बहुत निर्दोष भावसे इस मारपीटका कारण पूछा। बस, इस अपराधपर उन्हें भी अत्यन्त क्रूरतापूर्वक पीटा गया। इसी तरह, बहादुर और सुसंस्कृत युवकोंके एक दलको, उन लोगोंने जो उस समय उनके पहरेदार थे, ठोकरें लगाईं। लोगोंको अकारण इस तरह अपमानित किया जाता है, इससे यही जाहिर होता है कि हमारे शासकोंके तौर-तरीकों

  1. कलकत्ताके सर्वेंट पत्रके सम्पादक; देशबन्धु दासके बाद बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष। यह तार चक्रवर्तीके १६ दिसम्बर, १९२१ के तारके जवाब में भेजा गया था। तार इस प्रकार था: "कृपया तार द्वारा राय दीजिए कि क्या अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके गिरफ्तारशुदा सदस्योंके स्थान खाली माने जायें और क्या उनको भरा जा सकता है?