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१५. मदनमोहन मालवीयको भेजे जानेवाले तारका मसविदा[१]

[१६ दिसम्बर, १९२१][२]

चाहता हूँ आप समझ सकें कि यह संघर्ष अन्ततक चलनेवाला है। असहयोगी पूरी तरहसे प्रतिरक्षात्मक हैं। सार्वजनिक सभाओंका निषेध करने और उन्हें रोकनेवाले उत्तेजनात्मक आदेश यदि वापस ले लिये जाते हैं तो वर्तमान सविनय अवज्ञा स्वतः ही बन्द जायेगी। जबतक सरकार जनताकी इच्छाका आदर नहीं करती, स्वागत-समारोहका बहिष्कार अवश्य जारी रहेगा। सम्मेलन तबतक बेकार ही सिद्ध होगा जबतक सरकार सचमुच पश्चात्ताप न करें और बराबर चुभने वाली शिकायतों को दूर करने की इच्छुक न हो तथा जनमतकी शक्तिके सम्मुख न झुके। तथापि जमनादास[३] व कुँजरूसे[४] स्थितिपर चर्चा करूँगा।

गांधी

[अंग्रेजीसे]
सेवेन मंथ्स विद महात्मा गांधी
  1. १८६१-१९४६; बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयके संस्थापक; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके दो बार अध्यक्ष।
  2. यह मसविदा गांधीजीने अपने निजी सचिव कृष्णदासको मालवीयजीका १६ दिसम्बर, १९२१ का तार मिलनेपर बोलकर लिखवाया था। तार इस प्रकार था: "वाइसरायपर गोलमेज सम्मेलनकी आवश्यकतापर जोर डालनेके लिए २१ तारीखको लगभग सात आदमियोंके एक प्रतिनिधि-मण्डलकी व्यवस्था कर रहा हूँ, इसलिए कलकत्ता जा रहा हूँ। जमनादास और कुंजरू स्थितिका विवरण देने कल साबरमती पहुँच रहे हैं। ऐसा कहनेके लिए आपकी अनुमति चाहता हूँ कि यदि सम्मेलनका प्रस्ताव मान लिया जाता है और सरकार हाथ रोक लेती है तथा नेताओंको छोड़ देती है, तो आप युवराजके स्वागतका बहिष्कार नहीं करेंगे तथा सम्मेलनकी समाप्तितक सविनय अवज्ञा स्थगित रखेंगे। २१ तक कलकत्ताका पता होगा न॰ ३१, बरटिल्लो स्ट्रीट।" कृष्णदासके कथनानुसार यह तार भेजा नहीं गया। जमनादास तथा कुँजरूके गांधीजीसे मिलनेके बाद जो उत्तर भेजा गया उसके लिए देखिए "तार: मदनमोहन मालवीय को", १९-१२-१९२१।
  3. जमनादास द्वारकादास, होमरूल लीगके प्रमुख नेता।
  4. हृदयनाथ कुंजरू (जन्म १८८७); भारत सेवक समाज (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के अध्यक्ष, उदार राजनीतिज्ञ तथा संसद-शास्त्री।