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१०. पत्र: महादेव देसाईको

गुरुवार [१५ दिसम्बर, १९२१][१]

चि॰ महादेव,

मैं तुम्हें लगभग नित्य ही पत्र लिखता रहा हूँ। स्वरूपरानीका[२] पत्र सुन्दर है, अर्थात् तुम्हारा पत्र सुन्दर है! लेकिन हमें किसी बातका श्रेय तो लेना नहीं है। सर्वदेवताओंको किया हुआ नमस्कार वस्तुतः केशवको ही जाता है। सब कार्य कृष्णार्पण हैं इसलिए कुछ भी चिन्तनीय नहीं है।

दासकी पत्रिकाएँ बहुत ओजपूर्ण हैं। उन्होंने [अहिंसाका] अमृत खूब पिया जान पड़ता है। बंगालने सचमुच गुजरातका स्थान ले लिया है और गुजरात पिछड़ गया है। मुझे यह अच्छा भी लगता है।

प्यारेलाल[३] शेष बातें तो तुम्हें बता ही देगा। उसका खूब उपयोग करना और अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखना। मैं चाहता हूँ कि तुम अब देवदासको जेल भेज दो। प्यारेलालको वहाँ भेजने का यह कारण भी है।

गोडबोलेको[४] मैं अलग पत्र नहीं लिख रहा हूँ। वह सब कागजात लेकर यहाँ आ जाये। अगर वह यहाँ आ जायेगा तो कुछ काम जल्दी निपट जायेगा। वहाँ अब उसकी कोई जरूरत नहीं जान पड़ती।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

निस्सन्देह गोडबोलेको स्वयंसेवकके रूपमें अपना नाम दर्ज करवाने की कोई जरूरत नहीं है।

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ११४२७) की फोटो नकलसे।

  1. गांधीजीने गुरुवार ८-१२-१९२१ को, श्री देसाईको लिखे एक पत्रमें यह इच्छा व्यक्त की थी कि स्वरूपरानी उन्हें पत्र लिखें। उन्होंने श्री देसाईको यह भी लिखा था कि वे उनकी सहायता के लिए प्यारेलालको भेजनेको तैयार हैं। उन्होंने यह पत्र सम्भवतः अगले गुरुवार को लिखा था।
  2. मोतीलाल नेहरूकी पत्नी।
  3. प्यारेलाल नय्यर, १९२० से गांधीजीके दूसरे निजी सचिव इन्होंने १९४२ में महादेव देसाईकी मृत्युके बाद उनका स्थान ग्रहण किया; महात्मा गांधी: दि लास्ट फेज आदिके रचयिता।
  4. गुजरात विद्यापीठके भूतपूर्वं प्राध्यापक; अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीके संयुक्त सचिव।