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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

अतिरिक्त आजकल के जमाने में विवाहकी बात ही विपरीत जान पड़ती है। ऐसी स्थितिमें जो बालक स्वयं उससे दूर रहना चाहता हो, उसे भी उसमें भाग लेने के लिए ललचाना तो उसपर अत्याचार करने जैसा ही है। आज जब मन दुर्बल पड़ गया है और प्रलोभनों का सामना करनेकी शक्ति क्षीण हो गई है तब अगर किसीने नियमोंका पालन करनेका निश्चय किया है और कुछ त्याग करनेकी इच्छा की है तो उसकी इस वृत्तिका पोषण किया जाना चाहिए। ऐसा करनेकी बजाय अगर हम स्वयं ही नियमोंको भंग करायेंगे तो हम दुर्बलताका पोषण करेंगे। मैंने जो बात विवाहके प्रसंग में कही है वह अनेक प्रसंगोंपर लागू होती है। अपने बच्चोंका विचारपूर्वक पालन-पोषण करनेवाले माँ-बाप ऐसे अनेक प्रसंगोंको ढूंढ़ निकालेंगे जब उन्होंने अपने बच्चोंको आगे ले जानेकी बजाय पीछेकी ओर धकेला है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५-१२-१९२१

९. पत्र: देवदास गांधीको

गुरुवार [१५ दिसम्बर, १९२१][१]

चि॰ देवदास,

तुम्हारे दो पत्र मिले। विषय-वस्तु जितनी सुन्दर है, तुम्हारी लिखावट उतनी ही खराब है। खूब प्रयत्न करो। मैं जानता हूँ कि अभी तुम्हें समय नहीं है। फिर भी तुम्हें प्रयत्न तो करना ही होगा।

हरिलालने बहुत सुन्दर काम किया। मैंने अभी-अभी सुना कि उसे छः मासका सपरिश्रम कारावास मिला है।

शेष बातें महादेवभाईको[२] मैंने जो पत्र लिखा है, उसमें है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ७७७५) की फोटो-नकल से।

  1. हरिलाल रविवार, १५ दिसम्बर, १९२१ को गिरफ्तार किये गये थे।
  2. महादेव देसाई (१८९२-१९४२ ); २५ वर्षतक गांधीजीके निजी मन्त्री रहे।