नवम्बर मासमें बम्बई शहरमें गम्भीर उपद्रव हुए जिनमें ५३ लोग मारे गये और लगभग ४०० घायल हुए। उसी दिन अन्य अनेक स्थानोंमें कानूनके खिलाफ की गई भयानक कार्रवाइयाँ देखनेमें आईं और इस अवसरपर यह स्पष्ट दिखाई दिया कि अनेक स्वयंसेवक संस्थाओंने हिंसा करने और धमकी देने, दैनन्दिन जीवनमें बाधा डालने का विधिवत् आन्दोलन आरम्भ कर दिया है। इस आन्दोलनकी रोक- थाम के लिए दण्ड संहिता और आपराधिक कार्रवाईकी दण्ड प्रक्रिया संहिताके अन्तर्गत कार्रवाइयाँ प्रभावहीन सिद्ध हुईं।
ऐसी परिस्थितिमें सरकारको अनिच्छापूर्वक अधिक व्यापक और कठोर कदम उठाने पड़े ।
फिर भी, राजद्रोहात्मक सभा - कानून के अन्तर्गत की गई कार्रवाइयाँ उन कुछ ही जिलोंतक सीमित रखी गईं जिनमें शान्ति-भंगका खतरा गम्भीर था । और १९०८ के दण्ड विधान संशोधन कानूनके अन्तर्गत केवल उन्हीं संस्थाओंके विरुद्ध कार्रवाई की गई जिनके अधिकांश सदस्य हिंसात्मक कार्य और जोर-जबरदस्ती कर रहे थे । इस विज्ञप्ति में उन सब प्रमाणोंको जिनसे भिन्न-भिन्न प्रान्तोंमें इस प्रकारके कदमोंका उठाया जाना उचित ठहरता है, विस्तारसे देना सम्भव नहीं है । परन्तु अगर प्रमाण चाहिए तो वे विभिन्न प्रान्तोंकी व्यवस्थापिका सभाओंके प्रकाशित कार्य-विवरणोंसे, विभिन्न प्रान्तोंकी सरकारी विज्ञप्तियोंसे तथा प्रान्तोंके शासकोंके भाषणोंसे प्रचुर रूपमें मिल सकते हैं। सरकारने लोगोंसे न्याय और व्यवस्थाका पालन कराने और सम्राट्के शान्तिप्रिय और राजभक्त प्रजाजनोंकी रक्षाके लिए कृत संकल्प रहने के साथ-साथ इस बातकी यथासम्भव सावधानी रखी है कि जहाँ सम्भव हो वहाँ जेलके कष्ट कम किये जायें और कोई ऐसा कदम न उठाया जाये जिससे बदलेके भावसे प्रेरित सख्ती प्रकट हो । स्थानीय सरकारों द्वारा जारी किये गये हुक्मोंसे यह बात भली प्रकार प्रमाणित हो जायेगी । अनेक अपराधी रिहा कर दिये गये हैं, सजाओंकी अवधि घटा दी गई है और राजद्रोहात्मक सभा कानून और जाब्ता फौजदारी संशोधन कानूनके अन्तर्गत दोषी पाये गये सजायाफ्ता लोगोंके मामलोंमें विशेष छूट दी गई है। इसलिए यह आरोप बिलकुल निराधार है कि सरकारने अविवेकपूर्ण और गैरकानूनी ढंगकी दमन-नीति अपनाई है।
श्री गांधीने एक और आरोप लगाया है। वह यह है कि सरकारकी अभी हालकी कार्रवाइयाँ सभ्यताकी उस नीति के प्रतिकूल हैं जिसका परिचय परमश्रेष्ठने अली भाइयोंकी क्षमायाचनाके अवसरपर दिया था। वह नीति थी — भारत सरकार असहयोग सम्बन्धी गति—विधियोंमें तबतक कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी जबतक वाणी और कर्मकी अहिंसा बरती जाती रहेगी। भारत सरकारने गत ३० मईको जो विज्ञप्ति प्रकाशित की थी उससे लिये गये निम्न उद्धरणसे यह निश्चित रूपसे सिद्ध हो जाता है कि यह आरोप मिथ्या है। यह बतानेके बाद कि श्री शौकत अली और श्री मुहम्मद अलीके अपने हस्ताक्षरोंसे युक्त वक्तव्यमें दिये गये गम्भीर आश्वासनको देखते हुए भारत सरकारने उनके खिलाफ मुकदमा न चलानेका निर्णय किया है; भारत सरकारने कहा था, "हिंसात्मक कार्योंके लिए उत्तेजना देनेवाले भाषणोंके सम्बन्धमें लोगोंपर मुकदमा चलानेका हमारा जो प्रारम्भिक संकल्प है उससे यह निष्कर्ष नहीं निकाल