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परिशिष्ट २

वाइसरायको लिखित गांधीजीके पत्रके सम्बन्धमें भारत सरकारको विज्ञप्ति

दिल्ली
६ फरवरी, १९२२

गत ४ फरवरीको श्री गांधीने सामूहिक सत्याग्रह प्रारम्भ करनेके अपने संकल्पको उचित ठहराते हुए जो घोषणापत्र प्रकाशित किया है उनमें कई गलत बयानियाँ हैं । इन गलत बयानियोंमें से कुछ तो इतने महत्त्वकी हैं कि भारत सरकार उनका प्रतिवाद किये बिना नहीं रह सकती। सबसे पहले भारत सरकार श्री गांधी के इस कथनका प्रबल रूपसे खण्डन करती है कि उसने गैरकानूनी ढंगसे दमन शुरू कर दिया है। सरकार उनके इस कथनको भी निराधार मानती है कि वर्तमान असहयोगी दल लोगों की सभा, सम्मेलन, भाषण और लेखनकी स्वतन्त्रताके मौलिक अधिकारकी रक्षाके लिए वर्तमान सत्याग्रह आन्दोलन छेड़नेपर विवश हुआ है।

सबसे पहले भारत सरकार इस तथ्यकी ओर ध्यान दिलाना चाहती है कि सत्याग्रहके कार्यक्रमको अपनानेका निर्णय अन्तिम रूपसे ४ नवम्बरको किया गया था और राजद्रोहात्मक सभा कानून अथवा दण्ड विधान संशोधन कानूनसे सम्बन्धित हालकी विज्ञप्तियाँ जिनका उल्लेख श्री गांधीने स्पष्ट शब्दों में किया है, उसके बाद जारी की गई हैं । अपनेको श्री गांधीके अनुयायी माननेवाले और असहयोग आन्दो- लनमें शामिल होनेवाले लोगों द्वारा किये गये भयंकर गैरकानूनी कामोंके परिणाम स्वरूप ही सरकारको कुछ कार्रवाइयाँ करनी पड़ी हैं जिनका उद्देश्य यह है कि शान्तिप्रिय नागरिक अपने वैध कारोबार सुरक्षित रूपसे चलाते रहें। और ये कार्रवाइयाँ पूर्ण रूपसे कानून सम्मत हैं । असहयोग आन्दोलनके प्रारम्भसे ही भारत सरकारने, इस इच्छासे कि राजनीतिक आन्दोलन फिरसे उग्रतर रूप धारण न कर ले, उसके उग्र हो जानेके बावजूद अपनी कार्रवाइयाँ उसी हदतक सीमित रखी हैं जिस हदतक कानून, व्यवस्था तथा सार्वजनिक शान्तिकी रक्षाके लिए वे आवश्यक थीं।

गत वर्ष नवम्बर मासतक स्वयंसेवक संस्थाओंके खिलाफ, दिल्लीको छोड़कर और किसी जगह कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। परन्तु नवम्बर में सरकारको एक नई और भयानक परिस्थितिका सामना करना पड़ा। गत वर्ष सैनिकों और पुलिस के सिपाहियोंको राजभक्तिसे डिगानेका योजनाबद्ध प्रयास किया गया और शान्ति-भंगकी बहुत-सी घटनाएँ हुईं जिन्हें भोली-भाली और उत्तेजनशील जनता के बीच असहयोगियों द्वारा किये गये प्रचारका सीधा परिणाम ही माना जा सकता है । उन उपद्रवोंके फलस्वरूप बहुतों की जानें गईं, लोगोंमें कानूनको न माननेका खतरनाक जज्बा पैदा हुआ और वैध सत्ताके प्रति तिरस्कारकी भावनामें वृद्धि हुई । अन्तमें हालत यहाँतक बिगड़ी कि गत