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७. नगरपालिकाओंपर विपत्ति

अहमदाबाद, नडियाद और सूरतकी नगरपालिकाओंपर शिक्षा विभागको लेकर फिर विपत्ति आ पड़ी है । सरकार नगरपालिकाओंको शिक्षा विभागको चलाने के अयोग्य ठहराकर उस विभागको अपने अधिकारमें करना चाहती है । इसीलिए उसने इस आशयका नोटिस जारी किया है कि यदि ये तीनों नगरपालिकाएँ १७ तारीखको पाँच बजेतक सरकारकी इच्छानुकूल बन्दोबस्त नहीं करेंगी तो सरकार शिक्षा विभाग-को अपने हाथमें ले लेगी । जहाँ नगरपालिकाको स्पष्ट बहुमत प्राप्त है वहाँ सरकारके लिए इस तरह कब्जा करना मुश्किल है ।

अब नगरपालिकाका असहयोगी सदस्य सिर्फ एक ही उद्देश्यसे वहाँ रह सकता है । और वह यह है कि वह हर उचित तरीकेसे लोगोंके बलको बढ़ाये तथा लोगोंपर सरकारके अधिकारको कम करे । जहाँ सहयोगियोंकी संख्या अधिक होने के कारण ऐसा न किया जा सके वहाँ असहयोगीको केवल अव्यवस्था पैदा करनेके लिए तथा चलते काममें दखल देनेकी खातिर ही नहीं रहना चाहिए । उसे समझ लेना चाहिए कि वैसा करनेसे जनबल में वृद्धि नहीं होती; बल्कि यह तो केवल कालक्षेप है । अनुभव सिखाता है कि जिसके पास बहुमत है वह केवल धाँधलेबाजीके बलपर ही अपने निर्णयसे पीछे नहीं हट जाता और जब सिद्धान्तोंपर मतभेद होता है तब वह अपने बहुमतका पूरा उपयोग करता है । जहाँ सिद्धान्तोंपर मतभेद नहीं होता वहाँ बहुमतके नियमसे सुन्दर फलकी प्राप्ति होती है । जहाँ सिद्धान्तोंपर मतभेद हो वहाँ बहुमत के आगे झुकनेकी रूढ़िसे समाजका अधःपतन होता है । अतः जिस नगरपालिकामें हम बहुमत प्राप्त कर सकते हों हमारा उसीमें रहना वांछनीय है ।

अब हम इस दृष्टिसे वर्तमान स्थितिकी जाँच करें । सरकारको शिक्षापर अधिकार करनेसे रोकने और उसके साथ झगड़ा करनेसे बचनेका एक रास्ता यह है कि शिक्षाका प्रबन्ध उसी नगरकी राष्ट्रीय संस्थाको सौंप दिया जाये और अनुदान देकर उसकी सहायता की जाये । नगरपालिकाको ऐसी सहायता देनेका अधिकार है । अगर ऐसा किया जा सके तो भले ही सरकार शिक्षापर अधिकार जमा ले किन्तु उसका कुछ मतलब न होगा । वह इससे वर्तमान विद्यार्थियोंपर अधिकार नहीं जमा सकती और वे स्वाश्रयी ही रहेंगे । सरकारी अधिकारी नये स्कूलोंकी स्थापना करना चाहें तो करें । उन्हें कोई नागरिक ऐसा करनेसे अवश्य ही नहीं रोकेगा लेकिन सरकारको इस स्कूलमें जानेवाले बालक कहाँसे मिलेंगे ? हमारी मान्यता तो यह है कि स्कूल जाने के इच्छुक सब बालक नगरपालिकाके स्कूलोंमें पढ़ने आते हैं । इसके अतिरिक्त नये विभाग के लिए अर्थकी व्यवस्था करनेमें भी सरकारको दिक्कतका सामना करना

१. इन नगरपालिकाओंने अपने स्कूलोंमें राष्ट्रीय शिक्षा देने और सरकारी अनुदान न लेनेका निश्चम किया था; नडियाद नगरपालिकाके निर्णयके लिए देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ३४६-४७ ।