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परिशिष्ट


परिशिष्ट १

सर शंकरन नायर के पत्रके उद्धरण

सम्पादक
'टाइम्स ऑफ इंडिया '
महोदय,

समाचारपत्रों में प्रकाशित कुछ वक्तव्योंको देखते हुए मैं आपसे इस पत्रको अपने स्तम्भों में स्थान देनेकी प्रार्थना करना चाहता हूँ ।

हम आपस में बातचीत करने और एक सम्मानजनक समझौते के उपाय खोजने के लिए निमन्त्रित किये गये थे । मैं तथा कई दूसरे लोग इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि श्री गांधी और उनके अनुयायियोंसे आगे बातचीत करना बेकार है । मैं जिसे सम्मान-जनक समझौता समझता हूँ, श्री गांधी उसमें सम्मिलित होना नहीं चाहते और ऐसा शक होता है कि समझौता हो भी जाये तो उसका पालन ईमानदारीसे नहीं किया जायेगा।

ऐसा कहनेके कारण बताना ठीक ही होगा ।

कल सम्मेलनमें घोषणापत्रके हस्ताक्षरकर्त्ताओंने कुछ प्रस्ताव रखे। श्री गांधीने उन प्रस्तावोंको स्वीकार नहीं किया। किन्तु सम्मेलनने एक समिति नियुक्त की जिसमें स्वयं उन्हीं के अनुरोधपर स्वयं उन्हें या उनके किसी अनुयायीको नहीं रखा गया, इसके कारण बादमें स्पष्ट हो जायेंगे। इस समितिने यथासम्भव उनकी इच्छाकी पूर्ति करनेके लिए कुछ प्रस्ताव तैयार किये। उन्होंने ये प्रस्ताव भी स्वीकार नहीं किये। उन्होंने दो लम्बे भाषण दिये। इनमें उन्होंने जहाँतक वाइसराय के साथ बातचीत करनेका सम्बन्ध है, अपनी स्थिति इस तरह बताई :

सरकारकी तरफसे "पश्चात्ताप" अवश्य व्यक्त किया जाना चाहिए। सरकारने जो कदम अभी हालमें उठाये हैं वे सब अनुकूल वातावरण तैयार करनेके लिए बिना किसी शर्त के वापस ले लिये जाने चाहिए; कानूनकी कुछ धाराओंकी अवधि बढ़ाने से सम्बन्धित विज्ञप्तियाँ न सिर्फ रद की जानी चाहिए बल्कि कांग्रेस और खिलाफत के सभी गिरफ्तार या सजायाफ्ता स्वयंसेवकोंको रिहा किया जाना चाहिए; साथ ही वे सब अन्य लोग भी रिहा कर दिये जाने चाहिए जिन्हें हालमें ही भारतीय दण्ड संहिता और दण्ड प्रक्रिया संहिताकी सामान्य धाराओंके अन्तर्गत सजाएँ दी गई हैं। इस पिछली माँगके एक मुद्दे में बादमें फेरफार कर दिया गया। श्री गांधीने कहा कि