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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
(५) सभाको तितर-बितर करनेके लिए बहुत ही थोड़ा बलप्रयोग किया गया था और किसीको चोट नहीं आई। ...

लखनऊ

१५ फरवरी

भवदीय,
जे० ई० गोंडगे

प्रचार आयुक्तने गोली चलनेकी घटनाके[१] सम्बन्धमें निश्चय ही मेरी गलती पकड़ी है। मुझे अधिक सावधान रहना और यह बताना चाहिए था कि गोली चलाने- वाला कोई सरकारी कर्मचारी नहीं था। मैं अब यह महसूस कर रहा हूँ कि इसकी चर्चा ही अप्रासंगिक और सरकारके प्रति अन्यायपूर्ण थी । गोली चलने की इस घटनाका गैरकानूनी दमनसे कोई सरोकार नहीं है । मैं इस गलती के लिए क्षमा माँगता हूँ और अधिकारियोंको यह विश्वास दिलाता हूँ कि वह जान-बूझकर नहीं की गई थी ।

परन्तु दूसरे प्रतिवादका मुझपर कोई प्रभाव नहीं पड़ सका। मैं पहले तो, बल-प्रयोगकी आवश्यकताको अस्वीकार करता हूँ; और दूसरे यदि मेरे संवाददाताके भेजे हुए बयानपर यकीन किया जाये तो जो बलप्रयोग हुआ वह आवश्यकतासे बहुत अधिक था । जनता इस सरकारी प्रतिवादपर विश्वास नहीं कर सकती। मुझे आशा है कि गोली चलाने की घटनाको लेकर मुझसे जो भूल हुई है उसका उपयोग सभाको जबरदस्ती तितर-बितर करनेके विवरणको गलत या कम महत्त्वपूर्ण बताने में न किया जायेगा । गोली चलाने की घटनाके विवरण में जो भूल हुई उसका मुख्य कारण तथ्योंका ठीक-ठीक न समझा जाना था ।

३. बम्बई जेलकी एक झाँकी

सूचना- निदेशक, बम्बईके अभिवादन सहित ।

:'यंग इंडिया' के १९ जनवरीके अंकमें 'हिन्दू' का एक उद्धरण छपा था, जो " एक पंजाबी मार्शल लॉ कैदी रहमत रसूल " के साथ हैदराबाद सेंट्रल जेलमें हो रहे तथाकथित दुर्व्यवहारके बारेमें था।[२] ऐसा लगता है कि लेखका संकेत हिम्मत रसूल नामके एक गुजराती कैदीकी ओर है, जिसे ११ अप्रैल, १९१९ को अहमदाबादमें टेलिग्राफके तार काटने, तार-घरमें आग लगाने और बलवा करने पर, अहमदाबादके विशेष न्यायाधिकरण द्वारा काले पानीकी सजा दी गई थी। आरोप और उनके सम्बन्धमें वास्तविक तथ्य इस प्रकार हैं :[३]

:असलियत यह है कि १३ दिसम्बरको जब इस कैदीको खड़े होनेका हुक्म मिला तो वह खड़ा नहीं हुआ और बहुत ही उत्तेजित हो गया और सुपरिंटेंडेंटके साथ बड़ी गुस्ताखीसे पेश आया । सजा जो बताई गई है वह नहीं, बल्कि एक महीनेके लिए टाटके कपड़ोंकी तथा तीन माहकी सादी बेड़ियोंकी सजा दी गई थी। इस जेल में आनेके बाद अबतक इस कैदीको ग्यारह बार सजा दी जा चुकी

  1. १. ऊपर उनके पत्रके केवल कुछ अंश ही दिये गये हैं ।
  2. देखिए “ मार्शल लॉ से भी बदतर, १९-१-१९२२ ।
  3. यहाँ उद्धृत नहीं किये गये हैं ।