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सरकार द्वारा प्रतिवाद

शब्द है । मैं अधिकारियोंकी अनधिकृत शारीरिक दण्डसे इनकार करनेकी आदतसे वाकिफ हूँ। क्या सरकार यह चाहती है कि यदि जेलके रजिस्टरमें शारीरिक दंडकी बात दर्ज नहीं है, तो लोगोंको यह मान लेना चाहिए कि वह दिया ही नहीं गया ? इस प्रतिवादको छापकर निश्चय ही मेरी उद्विग्नता और बढ़ गई है । क्योंकि इससे अमानुषिकता जारी रखने और प्रतिवादों द्वारा उसपर पर्दा डालनेका इरादा जाहिर होता है । प्रचार आयुक्त अपराधी पक्षोंके ऐसे प्रतिवाद भेजकर, जिनकी प्रमाणों द्वारा पुष्टि नहीं की गई है, अपने कर्त्तव्यका पालन ठीक तरह नहीं कर रहे हैं ।

२. देहरादूनकी घटना

सम्पादक
यंग इंडिया'
प्रिय महोदय,
...भारत सरकारकी विज्ञप्तिके अपने प्रत्युत्तर में आपने 'गैरकानूनी दमन' के उदाहरण देते हुए सातवें स्थलपर इस प्रकार लिखा है: “देहरादून में एक लड़केपर गोली चलाई गई और वहाँ एक सार्वजनिक सभाको जबरदस्ती तितर-बितर किया गया।"...इससे स्पष्ट ध्वनि यह निकलती है कि लड़के- पर गोली सरकारी अधिकारियोंने चलाई थी । शायद आपका संकेत २४ दिसम्बर, १९२१ की गोली चलनेकी उस घटनाकी ओर है जिसमें मैडन नामके एक नौजवान यूरोपीयने एक मुसलमान युवकपर गोली चलाई थी। मंडन सरकारी कर्मचारी नहीं है। दुर्घटना किसी निजी झगड़के कारण हुई थी। ... मंडनपर मुकदमा चलाया गया और भारतीय दंड संहिता की धारा ३०७, ३२६ के अधीन उसे सेशन सुपुर्द कर दिया गया। ... सार्वजनिक सभाको क्रूरतापूर्वक और जबरदस्ती तितर-बितर करनेके आरोपके सम्बन्धमें, निःसन्देह, आपको गलत सूचना मिली है। तथ्य इस प्रकार हैं :
(१) स्वयंसेवकों के जुलूस देहरादूनमें एक भारी मुसीबत बन गये थे और उनका रवैया कई मौकोंपर बहुत ही भड़कानेवाला होता था ।
(२)मजिस्ट्रेटकी अनुमतिसे, पुलिस अधीक्षकने कुछ इलाकोंमें उनपर पाबन्दी लगा दी। ऐसा असहयोगियोंके हितमें ही किया गया था, क्योंकि जनतामें कुछ लोग इस बारेमें अधीर हो उठे थे ।
(३) स्थानीय उग्रपंथी पत्र 'गढ़वाली' ने इन प्रदर्शनों की बुद्धिहीनता और मूर्खतापर टीका-टिप्पणी की थी।
(४) स्वयंसेवकोंने पुलिस अधीक्षकके आदेशको अवज्ञा करनेका निश्चय किया।...