पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/५५३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२९
कांग्रेसकी बैठक

स्वराज्यका कायल नहीं है उसके लिए कांग्रेसमें स्थान नहीं है । उसी तरह मेरी राय है कि जो 'शान्तिमय और जायज तरीकों' को नहीं मानता वह भी कांग्रेस में नहीं रह सकता। कोई कांग्रेसी असहयोगका कायल न होते हुए तो उसके अन्दर रह सकता है; परन्तु यदि वह हिंसा और असत्यमें विश्वास रखता है तो वह कांग्रेसी नहीं बना रह सकता। अतएव जब मैंने देखा कि कांग्रेसके ध्येय-विषयक प्रस्तावकी टिप्पणीका विरोध हो रहा है तब मेरे हृदयको गहरा आघात पहुँचा । और जब मैंने 'शान्तिमय और 'जायज' शब्दोंकी व्याख्या करते हुए 'अहिंसा' और 'सत्य' शब्द प्रस्तुत किये और उनका भी विरोध हुआ तब तो मुझे और भी गहरी व्यथा हुई।[१] मेरे पास इन शब्दोंकी योजनाका कारण था । मुझसे संजीदगी के साथ यह कहा गया था कि कांग्रेस के ध्येयमें यह आग्रह नहीं है कि अहिंसा और सत्य स्वराज्य-प्राप्तिके लिए अनिवार्य हैं । दुःखकारक वाद-विवादको टालनेके लिए मैंने उन पर्यायोंको हटा लिया; पर मुझे यह जरूर लगा कि सत्यपर घातक प्रहार हुआ है ।

यह तो ठीक ही है कि विरोध करनेवाले सज्जन भी वैसे ही देशभक्त हैं जैसा मैं होने का दावा करता हूँ; वे स्वराज्यके लिए भी उतने ही उत्सुक हैं जितने कि दूसरे तमाम कांग्रेसी हैं; लेकिन मैं इतना जरूर कहूँगा कि उनकी देशभक्तिकी भावना का यह तकाजा है कि वे अहिंसा और सत्यका निष्ठा और दृढ़ताके साथ पालन करें और यदि वे इनके कायल न हों तो उन्हें चाहिए कि कांग्रेस-संगठनसे अपना सम्बन्ध तोड़ लें ।

क्या राष्ट्रीय मितव्ययिताकी दृष्टिसे यह उचित न होगा कि सभी आदर्शोंकी ठीक-ठीक परिभाषा हो जाये और लोग उसके अनुसार स्वतन्त्र रूपसे काम करें ? फिर जो आदर्श अधिकसे-अधिक लोकप्रिय होगा वही श्रेष्ठ माना जायेगा । यदि हम प्रजातन्त्रके सच्चे भावोंका विकास चाहते हैं तो हम अड़ंगा-नीतिके बजाय अलग होकर स्वतन्त्र रूपसे काम करनेकी नीतिको अपनायें ।

कांग्रेस के इस अधिवेशनमें यह बात बिलकुल साफ हो गई कि देशके स्वराज्य- तक पहुँचने में बाधक हम हैं, सरकार नहीं । सरकारकी हरएक गलतीसे हमारा काम आगे बढ़ता है; किन्तु अपने कर्त्तव्यकी अवहेलनाके कारण हमारी प्रगति रुकती है ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया,२-३-१९२२
 
  1. देखिए “ प्रस्ताव : बारडोली कार्य-समितिके", १२-२-१९२२ को पाद-टिप्पणी ३ ।
२२-३४