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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आनन्दित ही होंगे। हजारों रूसी कैदी बरसोंसे रूसके जेलखानोंमें आजतक 'सड़ रहे' हैं। बेचारे आजतक आजाद नहीं हो पाये । स्वाधीनता बड़ी मानिनी है । उसे राजी और प्रसन्न कर पाना बड़ा ही कठिन है । हमने कष्ट सहनकी सामर्थ्यका तो परिचय दे दिया । पर हमने अभी काफी कष्ट सहन नहीं किया है। यदि लोग निष्क्रिय रूपमें शान्त बने रहें और कुछ थोड़े ही लोग सक्रिय रूपमें, सचाईके साथ, जान- बूझकर मन, वचन, और कर्मसे शान्तिमय बने रहें तो हम जल्दी से जल्दी और कमसे- कम कष्ट सहन करके अपने ध्येयतक पहुँच सकते हैं । परन्तु यदि हम ऐसे लोगोंको जेल भेजेंगे जो अपने दिलोंमें हिंसाको छिपाये हुए हैं तो हम अपने ध्येयसे न जाने कबतक दूर-ही-दूर बने रहेंगे ।

अतएव बहुमतवालों का अब यह कर्त्तव्य है कि वे अपने-अपने प्रान्तोंमें लोगोंके ताने -उलाहनोंका खयाल न करें, अपमानको सहन करें, और साथी लोग छोड़कर चले जायें तो उसे भी बरदाश्त करें; पर सत्य मार्गसे एक इंच भी न हटते हुए निश्चयके साथ अपने लक्ष्यकी ओर बढ़ते चले जायें । अधिकारी लोग भूलसे इसे हमारी कमजोरी समझकर हमें और अधिक पीड़ित क्यों न करें, हमें उसे सहन करना चाहिए । यहाँतक कि हमें प्रतिरक्षात्मक सविनय अवज्ञा भी छोड़ देनी चाहिए और आर्थिक तथा सामाजिक सुधारमें अपनी सारी शक्ति लगा देनी चाहिए। यह रचनात्मक कार्य अरुचिकर भले ही लगे पर है स्वास्थ्यप्रद । हमें अत्यन्त विनयपूर्वक अपने नरम दलवाले भाइयोंको यकीन दिलाना चाहिए कि वे हमसे जरा भी भय न खायें; उन्हें हमसे जरा भी नुकसान न पहुँचेगा । हमें जमींदार भाइयोंको भी आश्वस्त कर देना चाहिए कि हमारे दिलमें आपके लिए कोई बदी नहीं है ।

औसत अंग्रेज घमण्डी होता है । वह हमको समझता नहीं और अपनेको हमसे कहीं ऊँचा मानता है । उसका खयाल है कि वह हम भारतवासियोंपर राज्य करनेके लिए ही पैदा हुआ है । उनको अपने किलों और तोपोंका बड़ा भरोसा है। उन्हींको वे अपनी रक्षाका साधन मानते हैं । वे हमें तुच्छ समझते हैं। वे हमसे जबरदस्ती सहयोग अर्थात् गुलामी कराना चाहते हैं । हमें ऐसे आदमियोंका दिल भी जीतना है; पर यह उनके आगे घुटने टेककर नहीं, बल्कि उनसे अलग रहकर और साथ ही बिना उनसे द्वेष किये, बिना उन्हें चोट पहुँचाये । उन्हें दिक करना — सताना कायरता है। अगर हम केवल इतना ही करें कि अपनेको उनका गुलाम न मानें और उनकी जी- हुजूरी न करें तो हम अपने कर्त्तव्यका पालन कर चुके । चूहेकी ख़ैर तो बिल्लीसे दूर रहने में ही है। उससे दोस्ती रखने का मतलब तो अपनेको उसके हवाले कर देना है । मगर हमें उन चन्द अंग्रेज भाइयोंका खयाल रखना है जो जाति—अभिमान के रोगसे खुद अपनी तथा अपने साथी अंग्रेज भाइयोंकी मुक्तिकी कोशिश कर रहे हैं ।

अल्पमतवालोंका आदर्श दूसरा ही है। उन्हें इस कार्यक्रममें विश्वास नहीं है । तब क्या उनके लिए यह उचित और देशभक्तिपूर्ण बात नहीं है कि वे एक नये दल और नवीन संगठनकी सृष्टि कर लें ? वे तभी देशमें अपने मतका प्रचार कर सकते हैं । जिन्हें कांग्रेसके ध्येयमें विश्वास न हो उन्हें चाहिए कि वे उससे अलग हो जायें । राष्ट्रीय संस्था होने का अर्थ ध्येयविहीन होना नहीं है । उदाहरणके लिए जो व्यक्ति