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एक उलझन और एक हल

लोगोंके लिए दो मार्ग खुले थे-- एक तो सशस्त्र विद्रोहका और दूसरा शान्तिमय विद्रोहका । इनमें से असहयोगियोंने--कुछ लोगोंने अपनी कमजोरी और कुछने अपनी शक्तिके कारण --शान्तिका मार्ग अर्थात् स्वेच्छापूर्वक कष्ट-सहन, पसन्द किया है ।

यदि देश इन कष्ट-सहन करनेवाले वीरोंके साथ होगा तो सरकारको या तो झुकना पड़ेगा या वह मटियामेट हो जायेगी; इसके सिवा दूसरी गति नहीं । यदि लोगोंने उनका साथ न दिया तो उन्हें कमसे-कम इस बातका तो सन्तोष होगा कि हमने अपनी आजादी बेच नहीं डाली । सशस्त्र युद्धमें आम तौरपर वही विजयी होता है जो अधिक मार-काट करता है । परन्तु शान्ति और कष्ट-सहन लोकमतको शीघ्र तैयार करने का सबसे सुगम उपाय है और इसलिए इसके द्वारा प्राप्त की हुई विजय, सत्यकी विजय कहलाती है । लॉर्ड रीडिंगकी जिंदगी अदालतोंके वातावरणमें गुजरी है । अतएव उन्हें सत्ताके प्रति की गई सविनय अवज्ञाकी कद्र करना कठिन मालूम हो रहा है । परन्तु जब यह युद्ध समाप्त हो जायेगा तब वाइसराय इस बातको जानेंगे कि इन अदालतोंसे भी बढ़कर कोई अदालत है और वह है अन्तरात्माकी अदालत; जो दूसरी तमाम अदालतोंसे श्रेष्ठ है ।

लॉर्ड रीडिंग चाहें तो इन तमाम कष्ट सहन करनेवाले लोगोंको अपने हिताहित-का कुछ भी खयाल न रखनेवाले पागलोंकी संज्ञा दे सकते हैं । इसलिए उन्हें उन लोगोंको 'गलत रास्ते' से हटा देनेका भी अधिकार है । पागलोंके लिए तो यह व्यवस्था बिलकुल ठीक है; यदि यह सरकारके भी अनुकूल पड़ती हो तो फिर यह एक आदर्श अवस्था ही है । हाँ, यदि असहयोगी खुद ही जेल जानेका मौका आ जानेपर नाक-भौंह चढ़ाते हों, या मुँह फुलाते हों अथवा जैसा कि लालाजीने कहा है “सरकारसे दया और कृपाकी भिक्षा" माँगते हों, तो अलबत्ता वाइसरायको शिकायतका मौका हो सकता है । असहयोगीका बल तो इसी बातमें है कि बिना किसी तरहकी शिकायत किये जेल चला जाये । यदि खुद ही जेलका आह्वान करके, उसका पारितोषिक पाते ही, वह कुड़कुड़ाने लगे तो अपनी बाजी तुरन्त हार जाता है ।

वाइसरायने जो धमकी दी है, वह अशोभनीय है । आखिरी फैसला हुए बिना युद्ध तो रुक ही नहीं सकता । यह लड़ाई तो पशु-बलकी सत्ता और लोकमतके बीच है । जो लोग लोकमतकी ओरसे लड़ रहे हैं वे पशुबलके सामने छाती खोलकर खड़े रहनेका निश्चय कर चुके हैं -- वे अपने मतको छोड़ देनेके लिए हरगिज तैयार नहीं हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १५-१२-१९२१