पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/५४९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१९८. कांग्रेसकी बैठक

हालमें[१] दिल्लीमें अ० भा० कांग्रेस कमेटीकी जो बैठक हुई वह कुछ बातोंमें कांग्रेस के अधिवेशनसे भी अधिक स्मरणीय रही। देशमें भीतर-ही-भीतर जाने-अनजाने हिंसाका इतना प्रबल प्रवाह बह रहा है कि मैं वास्तवमें यही प्रार्थना कर रहा था कि इस बार मेरी करारी हार हो जाये। मेरे साथ हमेशा बहुत ही थोड़े लोग रहे हैं । पाठक इस बातको नहीं जानते कि दक्षिण आफ्रिकामें जब मैंने लड़ाई छेड़ी, तब प्रायः सभी साथी मुझसे सहमत थे, पर बादमें ६४ और आगे चलकर तो केवल १६ सज्जन ही मेरे साथ रह गये। कुछ समय बीतनेपर फिरसे विशाल बहुमत मेरी ओर हो गया । उन दिनोंमें जब कि अल्पमत मेरी तरफ था वहाँ अच्छेसे अच्छा और पुख्तासे-पुख्ता काम हुआ था ।

सरकार अगर किसी बातसे डरती है तो इसी विशाल बहुमतसे जो मेरी ओर दिखाई देता है। पर वह शायद नहीं जानती कि मैं तो उससे भी अधिक इस बहुमतसे डरता हूँ । अन्धविश्वासी लोगोंके दलके-दल बिना सोचे-विचारे जहाँ मैं जाता हूँ वहाँ उमड़ पड़ते हैं। मैं तो इससे सचमुच तंग आ गया हूँ । यदि वे मेरे प्रति तिरस्कार और क्रोध प्रदर्शित करते तो उससे मुझे अपनी ठीक स्थितिका भान हो जाता और तब मुझे न हिमालय जैसी भूल अथवा किसी दूसरी गलत-अन्दाजीको कबूल करनेकी आवश्यकता पड़ती, न पीछे हटना पड़ता, और न फिरसे नई व्यवस्था करनी पड़ती ।

परन्तु होनहार कुछ और ही थी ।

एक मित्रने मुझे सावधान किया, कहीं आप अपने 'सर्वाधिकारीपन ' का दुरुयोग न कर बैठिएगा। पर वे नहीं जानते कि मैंने उस अधिकारका उपयोग आजतक नहीं किया; भले ही उसका कारण यही रहा हो कि उसके उपयोग करनेका बाकायदा मौका ही अबतक उपस्थित नहीं हुआ था। इस 'सर्वाधिकारीपन' का अवसर तो तभी आ सकता है जब सरकार कांग्रेसके सामान्य तंत्रको भी अपंग बना दे ।

पर अपने 'सर्वाधिकारीपन ' का दुरुपयोग करना तो दूर रहा, मुझे तो यहाँतक लगने लगा है कि कहीं मेरा ही 'दुरुपयोग' न किया जा रहा हो और मुझे उसकी ख़बर न हो। मैं अब इस बातसे इतना सशंकित रहने लगा हूँ जितना पहले कभी नहीं रहा । पर मेरी ढाल तो सिर्फ मेरी निर्लज्जता है । मैंने कांग्रेस कमेटी के सदस्योंको जता दिया है कि मेरा रोग तो असाध्य है । जब-जब लोगोंसे भूल होगी तब-तब उसे कबूल किये बिना मुझसे नहीं रहा जायेगा । मैं इस दुनियामें अगर किसी जालिमके आगे सिर झुकाता हूँ तो वह है 'मेरे अन्तस्तलकी शान्त सूक्ष्म आवाज' । और यद्यपि मेरा साथ देनेवालों की संख्या घटते घटते न्यून हो जाये और मेरे अकेले पड़ जानेकी नौबत आ जाये तो भी मेरा विनम्र विश्वास है कि मुझमें उस समय भी खड़े रह सकनेका साहस है । मेरे लेखे सच्ची और सही स्थिति यही है ।

  1. २४-२५ फरवरी, १९२२ को ।