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टिप्पणियाँ

बहुत अरसे से कोई ध्यान नहीं दिया है। यदि उनकी ओर सहायताका हाथ बढ़ाया जाये तो वे भारतके गौरव बन सकते हैं। उन्हें जरूरत सिर्फ इस बातकी है कि उनके घरोंमें चरखा हो और उनके बच्चोंके लिए ऐसे स्कूल हों जहाँ वे सीधी-सादी शिक्षा प्राप्त कर सकें । देशमें आज जो व्यापक जागृति आई है उसमें रियासतें और सुधारकगण किसी भी कौमकी उपेक्षा नहीं कर सकते ।

आन्ध्रपर मुसीबत

एक संवाददाता लिखते हैं :[१]

जिस तरह के व्यवहारकी रिपोर्ट की गई है, उसपर मुझे कोई आश्चर्य नहीं है । अधिकारियोंको यह एक बहुत नायाब मौका हाथ लगा है। और वे चाहते होंगे कि आन्ध्रके लोगोंकी हिम्मतको तोड़कर उन्हें हमेशा के लिए कुचलकर रख दिया जाये । इस समय मेरे पास बारडोली जैसी कोई शक्ति नहीं है कि मैं लोगों के सामने एक नमूना पेश कर सकता । पर मैं उनसे आग्रह यही करूँगा कि वे धैर्य रखें, क्रुद्ध न हों और भयभीत भी न हों। अन्यायीके विरुद्ध मनमें कोई दुर्भावना रखे बिना, उन्हें सभी अत्याचार सह लेने चाहिए। वह हमारी सम्पत्ति और देहपर अधिकार कर सकता है किन्तु हमसे हमारा संकल्प नहीं छीन सकता ।

पीड़ित असम

'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें असम के दमनकी बहुत खबरें छप चुकी हैं। मेरे खयालमें असमने शायद सबसे अधिक कष्ट सहा है । वहाँ कोई भी उल्लेखनीय नेता बाहर नहीं बचा है । जो बचे हैं उन्हें असाधारण कठिनाइयोंमें काम करना पड़ रहा है। नीचे जो सजीव विवरण[२]दिया जा रहा है, उसपर टीका-टिप्पणीकी जरूरत नहीं है ।

पाठकोंको [ इसके साथ ] १६ फरवरीके 'यंग इंडिया' का पृष्ठ १०५ फिरसे पढ़ जाना चाहिए। जो भी कार्यकर्ता बचे हुए हैं, उन्हें मेरी यही सलाह है कि फिलहाल सभी उग्र कार्यवाहियाँ रोक दी जायें। वे अपनी पूरी शक्तिसे रचनात्मक कार्यमें लग जायें । हमारे साथियोंमें यदि तनिक भी हिंसाकी भावना आ गई हो, तो उसे दूर करें। कांग्रेस- दफ्तर असमके सुन्दर पेड़ोंके नीचे लगाइए। यदि हम अपने प्रति सच्चे बने रहे, तो यह तूफान पलक मारते ही गुजर जायेगा ।

अजमेर में अन्धेर

पण्डित गौरीशंकर भार्गवने दिल्लीसे निम्नलिखित तार[३]भेजा है जो अपने आपमें स्पष्ट है :

 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उसमें वर्णनात्मक ढंगसे यह कहा गया था कि गुण्टूर जिले में, कर-भान्दोलन बन्द कर देनेपर भी स्वयंसेवकोंको गिरफ्तार किया गया और मारा-पीटा गया ।
  2. यह यहाँ नहीं दिया जा रहा है । इसमें विभिन्न स्थानोंपर कांग्रेसके कार्यालयोंकी लूटपाट, उनको जला देनेका विवरण तथा स्वयंसेवकोंको मनमानी सजाएँ देनेके समाचार थे ।
  3. यहाँ केवल सम्बन्धित अंश ही दिया गया है ।