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टिप्पणियाँ

जाना छोड़ दिया है। यदि हम प्रामाणिक पंचायतोंकी स्थापना न करेंगे तो लोग अवश्य ही फिरसे उन्हीं सरकारी अदालतोंकी शरण लेंगे ।

राजनैतिक परिणाम

इनमें से कोई बात ऐसी नहीं है जिसका राजनैतिक परिणाम बहुत व्यापक न हो । खादी के पर्याप्त मात्रामें उत्पादन और उसका व्यापक उपयोग होनेसे एक तो विदेशी कपड़ेका बहिष्कार सदाके लिए हो जायेगा और दूसरे ६० करोड़ रुपये हर साल गरीब लोगोंमें अपने-आप बँट जाया करेंगे। शराब और अफीमके दुर्व्यसनोंके लुप्त हो जानेसे हर साल लोगोंके १७ करोड़ रुपये बचेंगे और सरकारकी इतनी ही आमदनी कम हो जायेगी । अछूतोंके लिए रचनात्मक कार्य करनेसे कांग्रेसको छः करोड़ लोगोंके सहयोगका लाभ होगा और कांग्रेससे उनका चिर सम्बन्ध बना रहेगा । यदि समाज- सेवा संघकी स्थापना हो गई और उसका काम ठीक-ठीक चला तो उसकी बदौलत सहयोगियों (चाहे भारतीय हों या अंग्रेज) और असहयोगियोंकी अनबन दूर हो जायेगी । अतएव इस पूरे रचनात्मक कार्यक्रमके अनुसार काम करना मानो अपना अभीष्ट प्राप्त कर लेना है। इसमें असफल होना प्रभावी सविनय अवज्ञाकी सारी सम्भावनाको दूर हटा देना है।

खिलाफत के बारेमें

कुछ मुसलमान दोस्तोंने कहा है, "आपका कार्यक्रम स्वराज्यके लिए तो ठीक है, पर यह इतना धीमा है कि खिलाफतकी रक्षाके लिए लाभप्रद नहीं है । खिलाफतका सवाल कुछ ही महीनोंमें तय हो जाने को है, इसलिए जो कुछ भी किया जा सकता हो अभी किया जाना चाहिए।" आइए हम इस सवालपर विचार करें। ईश्वरकी कृपासे खिलाफतका ध्येय गाजी मुस्तफा कमाल पाशाके हाथोंमें सुरक्षित है। उन्होंने खिलाफतको प्रतिष्ठा जिस तरह पुनःस्थापित की है, उस तरह आजका कोई भी मुसलमान नहीं कर पाया है । भारतने अपने धनसे जो थोड़ी-बहुत सहायता की है उसका कुछ महत्त्व तो है ही; पर अधिक सहायता तो उसने हिन्दू-मुस्लिम एकता द्वारा और सरकारको साफ-साफ शब्दों में यह बताकर की है कि यदि इंग्लैंडने अपनी टर्की- विरोधी नीति जारी रखी और भारतीय साधनोंको टर्कीके खिलाफ इस्तेमाल किया, तो यह देश सरकारसे कोई सम्बन्ध नहीं रखेगा और पूर्ण स्वतन्त्रताकी घोषणा कर देगा । इस घोषणामें जितना बल होगा, इस्लामकी प्रतिष्ठा और मुस्तफा कमाल पाशाकी शक्ति भी उतनी ही बढ़ेगी। कुछ लोगोंका यह खयाल है कि कुछ हजार आदमियों के, चाहे वे किसी भी योग्यता के क्यों न हों, जेल जानेसे सरकारको जो अस्थायी परेशानी होगी सिर्फ उसीसे वह हमारी इच्छाओंके आगे झुक जायेगी। हमें सरकारकी ताकत कम करके नहीं आँकनी चाहिए। मुझे यकीन है कि सरकार में अभीतक इतनी शक्ति है कि वह हिंसाकी पूरी भावनाको कुचल सकती है। और किसी भी तरह जेल चले जाना, हिंसाके सिवा और कुछ नहीं है । पवित्रात्माओं और ईश्वरसे डरनेवाले लोगोंके कष्ट सहनका ही प्रभाव पड़ता है, भेड़िया-धसानका नहीं । भारत जितना पवित्र होता जायेगा, उसकी शक्ति उतनी ही बढ़ती जायेगी। जो शरीरसे दुर्बल