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टिप्पणियाँ

हृदयको टटोल न लें तबतक उन्हें कोई कदम आगे नहीं बढ़ाना चाहिए, बल्कि अपने यहाँ पूर्ण शान्तिमय वातावरण तैयार करना चाहिए। क्रोधके आवेशमें जो लोग जेल गये हैं उनसे हमें कोई लाभ नहीं हुआ । मैं मुसलमानोंके इस विचारसे, जो हिन्दुओंका भी विचार है कि महज जेल जानेके ही लिए जेल नहीं जाना चाहिए, सहमत हूँ । जेलोंमें जाना तो तभी उपयोगी हो सकता है जब धर्म या देशके लिए वहाँ जाया जाये और जब वही लोग जायें जो खादी पहनते हों और जिनके दिलसे हिंसा और क्रोधका भाव निकल गया हो । यदि प्रान्तोंमें ऐसे स्त्री-पुरुष न हों तो उन्हें सविनय अवज्ञा कदापि प्रारम्भ नहीं करनी चाहिए।

रचनात्मक कार्यक्रम

रचनात्मक कार्यक्रमकी आयोजना इसीलिए की गई है। इससे हमारा चित्त स्थिर और शान्त होगा, हमारी संगठन-शक्ति जाग्रत होगी, हम परिश्रमी और उद्योगी बनेंगे, हम स्वराज्य के योग्य होंगे, और हममें गम्भीरता आ जायेगी । सम्भव है कि लोग हमें धिक्कारें, हमपर हँसे, हमें खरी-खोटी सुनायें, मारें-पीटें और बकें-झकें तो भी हमें इन सब बातोंको अवश्य सहन करना चाहिए, क्योंकि हमने अहिंसाकी प्रतिज्ञा लेनेके उपरान्त भी अपने हृदयमें हिंसा भावको कायम रखा। मुझे यह बात साफ-साफ कह देनी चाहिए कि जबतक हम जान-बूझकर अपनी त्रुटियोंको नहीं सुधारेंगे, अहिंसा- वृत्तिका विकास नहीं करेंगे और खादी तैयार न करेंगे तबतक हम न तो खिलाफत की कारगर सेवा कर सकते हैं, न पंजाबके अन्यायोंका परिमार्जन करा सकते हैं और न स्वराज्य ही प्राप्त कर सकते हैं। यदि मैं अपने साथियों तथा सर्वसाधारणको इस बातका निश्चय न दिला सकूं कि इस रचनात्मक कार्यक्रमके अनुसार जोर-शोरसे काम करनेकी अत्यन्त और तुरन्त आवश्यकता है तो मेरा नेतृत्व बिलकुल बेकार है ।

हमको यह देखना चाहिए कि हमें सारे भारतसे १ करोड़ ऐसे लोग मिल सकते हैं या नहीं, जो इस बातको मानते हों कि हमें शान्तिमय अर्थात् अहिंसात्मक और वैध या दूसरे शब्दोंमें सत्यताके साधनोंके द्वारा स्वराज्य प्राप्त करना है ।

हमें स्वदेशी प्रचार के लिए रुपया अवश्य एकत्र करना होगा और हमें यह जानना होगा कि भारतमें ऐसे कितने लोग हैं जो सचाईके साथ तिलक स्वराज्य-कोषमें अपने पिछले सालकी आमदनीमें से एक सैकड़ा रकम देनेके लिए तैयार हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कांग्रेसियों तथा उनके समर्थकोंसे चन्देकी उम्मीद रखती है ।

हमें पानीकी तरह रुपया बहाकर चरखेका प्रचार घर-घरमें करना चाहिए, तथा खादी तैयार करनी चाहिए और जहाँ-जहाँ उसकी जरूरत हो तहाँ-तहाँ उसे भिजवाना चाहिए ।

हम अपने 'अछूत' भाइयोंकी उपेक्षा तो वास्तवमें बहुत समय से कर रहे हैं । वे कितने वर्षोंसे हमारी गुलामी करते चले आ रहे हैं। अब हमें उनकी सेवा करनी होगी ।

शराबखानोंपर धरना देनेसे कुछ लाभ जरूर हुआ है; पर वह ठोस नहीं माना जा सकता। जबतक हमारा प्रवेश नशेबाजोंके घरोंमें नहीं हो जाता तबतक