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१९७. टिप्पणियाँ

कांग्रेसको मूर्ति न बना डालिए

हमें कांग्रेसको कोरी पत्थरकी मूर्ति नहीं बना डालना चाहिए। मुझे यह अच्छा मालूम होता है कि प्रत्येक नर-नारी कांग्रेसी बन जाये और समझके साथ तथा खुशी- खुशी उसके प्रस्तावों के अनुसार व्यवहार करे । पर केवल इसी खयालसे कि कांग्रेस एक पुरानी या महान् संस्था है, उसके सभासद होना अथवा पसन्द हों या न हों, उसके प्रस्तावों को मान लेना मुझे जरा भी पसन्द नहीं है । बहुमतका नियम एक हदतक ही लागू हो सकता है । छोटी-मोटी और तफसीलकी बातोंमें ही बहुमत के अधीन होना उचित है । बहुमत के हर किसी प्रस्ताव के अधीन हो जाना तो गुलामी कहलाती है। जैसे किसीको परिषद् थोड़े-बहुत अंशोंमें भी कल्याणकारक संस्था मालूम होती है उसका केवल कांग्रेस के प्रस्तावकी खातिर ही उससे अलग हो जाना या उसके लिए उम्मेदवार बननेकी इच्छा न करना, मैं अनुचित मानता हूँ । उसी प्रकार केवल इसी लिए कि कांग्रेस कहती है, किसी वकीलको वकालत बन्द कर देना भी गलत है। प्रजातन्त्रका अर्थ यह नहीं है कि लोग भेड़ोंकी तरह बरतें। प्रजातन्त्रमें तो व्यक्तिगत विचार तथा कार्यकी स्वतन्त्रताकी रक्षा प्राणपणसे की जाती है । इसलिए मेरा यह खयाल है कि अल्पमतवालों को बहुमतसे भिन्न काम करनेका तबतक पूरा अधिकार है जबतक वे उक्त काम कांग्रेस के नामपर न करें । वकालत करनेवाले वकील कांग्रेसके सभासद हो सकते हैं, पर वे असहयोगी नहीं कहे जा सकते। वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य नहीं हो सकते और उन्हें होना भी नहीं चाहिए । इसी प्रकार जो व्यक्ति शुद्ध खादी न पहनते हों, जो खिताब धारण किये हों, अथवा जो परिषद् के सभासद हों, वे कांग्रेसी तो हो सकते हैं पर 'असहयोगी' नहीं माने जा सकते ।

कांग्रेसका सदस्य उन प्रस्तावोंसे बँध नहीं जाता है जो उसे स्वीकार न हों; यही नहीं बल्कि मेरा तो खयाल यह है कि उसे इससे भी आगे बढ़ जानेका हक है। शर्त सिर्फ इतनी ही है कि उसका काम कांग्रेस के मूल सिद्धान्त के विरुद्ध नहीं होना चाहिए और वह कांग्रेस के नामपर न किया जाना चाहिए। मान लीजिए कि कांग्रेस के कुछ प्रतिबन्ध किसी एक प्रान्तको अनुकूल नहीं जान पड़ते, और उस प्रान्तने अपना मत उनके प्रतिकूल दिया है, तथा उस प्रान्तको यह भी महसूस होता हो कि हम तो स्वयं कार्यक्रम चला सकते हैं, तो ऐसे प्रान्तको इस बातका पूरा हक है कि वह आगे बढ़ जाये, सफलता प्राप्त करके यह दिखा दे कि उसका कांग्रेस के प्रतिबन्धके बावजूद कार्य करना उचित था । कांग्रेस के प्रस्ताव सारे देश के लिए महत्तम समापवर्तककी तरह हो सकते हैं । यह तो समझा जा सकता है कि किसी निश्चित प्रान्तकी जरूरतोंको देखते हुए वे बहुत कम बैठते हों। ऐसा प्रान्त यदि पूरा विश्वास रखता हो और उसका कार्य कांग्रेसके किसी हितको चोट न पहुँचाता हो तो अपनी