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५. चरखे के बारेमें

सम्पादक
'यंग इंडिया'
महोदय,

जिला कांग्रेस कमेटीके पास ऐसा कोई कताई विशेषज्ञ नहीं है जिसकी सलाहले वह जन-साधारणमें प्रचारके लिए चरखेका चुनाव कर सके…

अधिकांश कार्यकर्त्ता अभीतक यह नहीं समझ पाये हैं कि ऐसे पतले तकुएपर ही जो चरखके एक चक्कर में १५० चक्कर पूरे कर लेता है ठीक बुने जाने योग्य सूत काता जा सकता है।

कुछ स्थानोंमें 'यंग इंडिया' द्वारा सुझाये गये चरखेको आदर्श नमूना माना जाता है लेकिन उसके तकुए (जिसका व्यास आम तौरपर कमसे कम आध इंच होता है) के चक्कर ४० से भी कम होनेके कारण तार खींचने के बाद उसमें पूरे बट डालनेके लिए पहियेको ज्यादा बार घुमाना जरूरी हो जाता है जिससे उसमें समय ज्यादा लगता है।

इसका परिणाम यह होता है कि बहुत-से चरखे बेकार पड़े रहते हैं अथवा उनसे ऐसा सूत तैयार होता है जिसे बुनकर कम बटा या विषम होनेके कारण नहीं लेते … यदि समिति तिलक स्वराज्य निधिका अधिकांश भाग इसी कामपर खर्च करनेवाली हो तो धन देते समय उसे यह स्पष्ट शर्त रख देनी चाहिए कि जिस जिला संगठनको यह धन दिया जा रहा है उसके पास एक ऐसा कताई-विशेषज्ञ होना चाहिए…

आपका इत्यादि,
(डा॰) ए॰ के॰ नूलकर
उपाध्यक्ष,
पूर्व खानदेश जिला कांग्रेस कमेटी

२१ नवम्बर, १९२१

इस पत्रको[१] मैं बड़ी प्रसन्नता के साथ प्रकाशित कर रहा हूँ। चाहता हूँ कि लोग इससे मौजूदा चरखों में सुधारकी ओर प्रेरित हों। इससे यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि हाथसे सूत कातने के काम में पढ़े-लिखे लोग कितनी दिलचस्पी ले रहे हैं। मैं डा॰ नूलकरके उदाहरणको स्पृहणीय मानता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५-१२-१९२१
  1. यहाँ केवल कुछ अंश ही दिये जा रहे हैं।