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१९६. भेंट : पत्र-प्रतिनिधियोंसे

दिल्ली
२६ फरवरी, १९२२

भेंट लिये जानेपर महात्मा गांधीने पत्र-प्रतिनिधियोंसे निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये :

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी[१]कार्यवाही बड़ी ही मननीय रही।

कमेटीमें जो कुछ हुआ मैं उस सबको प्रकट करनेकी स्थिति में नहीं हूँ । इससे यह न समझा जाये कि मैं कोई बात छिपाना चाहता हूँ या मैं किसी बातपर शर्मिन्दा हूँ । एक बात बिलकुल साफ झलक रही थी कि बारडोली में पास हुए प्रस्तावोंको[२]लेकर सदस्योंमें गहरी निराशा और तीव्र असन्तोष था । चूंकि ये प्रस्ताव सरकारी विज्ञप्तिका[३] उत्तर[४] देनेकेठीक बाद ही पास हुए थे, सदस्योंको इस बातका मर्म समझने में कठिनाई हुई कि मैंने वाइसरायको लिखे गये पत्रमें[५]सूचित कार्यक्रम क्यों बदल दिया । लोगों को तो यह शक भी हुआ कि मैं यह काम पण्डित मालवीयजी के प्रभावमें आकर कर रहा हूँ। कहा तो किसीने नहीं मगर जाहिर तो हो ही रहा था । अन्ततोगत्वा लोग यह बात समझ गये कि मैंने यह निर्णय चौरीचौरा की दुर्घटना के बाद मालवीयजीसे मिलने से पूर्व ही स्वतन्त्र रूपसे कर लिया था । व्यक्तिगत रूपसे तो मुझे यह स्वीकार कर लेने में कि मैंने पण्डितजीकी कोई बात मान ली है, जितनी प्रसन्नता होती उतनी और किसी चीजसे न होती । किन्तु मुझे इस बातका सदा बड़ा दुःख रहा है कि असहयोग और सविनय अवज्ञाके सम्बन्धमें मैं पण्डितजीकी रायसे सहमत नहीं हो सका हूँ। मैं यह सब केवल अपनी भावनाकी तीव्रता प्रकट करनेके लिए कह रहा हूँ ।

घोर असन्तोष और विरोधके होते हुए भी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्योंने अन्ततोगत्वा एक लम्बी बहसके बाद बारडोली के प्रस्तावोंको प्रायः पूराका पूरा मान लिया। इससे कांग्रेसके प्रति उनकी निष्ठा और अनुशासनके प्रति प्रेमका प्रचुर प्रमाण मिलता है । मैं यह मानता हूँ कि स्वयं मुझे व्याख्यात्मक प्रस्ताव के शब्द पसन्द नहीं आये । उसमें अनावश्यक रूपसे सफाई पेश की गई है; परिभाषाएँ, कांग्रेसकी नीतिका दुहराया जाना और सत्याग्रहका उल्लेख ये तीनों बातें अनुपयुक्त प्रतीत होती हैं, परन्तु जब लोगोंकी उद्विग्नताको शान्त करना तथा भ्रम और गलतबयानी बचाना आवश्यक

 
  1. यह बैठक २४ और २५ फरवरी १९२२ को दिल्लीमें हुई थी।
  2. ११ और १२ फरवरीके ।
  3. ६ फरवरीकी; देखिए परिशिष्ट २ ।
  4. ७ फरवरीको ।
  5. यह पत्र १ फरवरीको भेजा गया था ।