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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 



'नवजीवन' का बहिष्कार नहीं

मैंने गत सप्ताह एक संवाददाता द्वारा दी गई यह खबर प्रकाशित की थी कि वेरावलमें सत्ताधीशोंने 'नवजीवन' पर रोक लगायी है । दूसरा संवाददाता लिखता है कि यह समाचार निराधार है, वह स्वयं लोगोंको 'नवजीवन' देता है और उसे कोई रोकता नहीं । 

'खादीका भण्डार

पाठकोंने 'नवजीवन' में कांग्रेस खादी कार्यालयकी ओरसे जारी किया गया विज्ञा- पन देखा होगा । 'नवजीवन' में विज्ञापन नहीं दिये जाते तो फिर यह अपवाद क्यों हो - यह सोचकर बादमें उसे देना बन्द कर दिया । खादी कार्यालयने इसका विरोध किया है। यहाँ मुझे यह कह देना चाहिए कि 'नवजीवन' ने उस विज्ञापनके पैसे नहीं लिये हैं। दोनों पक्षोंकी बात सही है । हमारा इरादा यह रहा है कि 'नवजीवन' की सारी जगहका उपयोग केवल पाठ्य सामग्री के प्रकाशनमें ही होना चाहिए, इसलिए मुफ्त विज्ञापन लेना भी मुश्किल काम है । उसमें यह प्रश्न उठता है कि किसका लें और किसका न लें ? ऐसा होनेपर भी यह कहा जा सकता है कि खादीकी खातिर ही 'नवजीवन' का अस्तित्व है, इसलिए मैं उसे इस बार विज्ञापनके तौरपर प्रकाशित करनेकी अपेक्षा अधिक महत्त्व प्रदान करना चाहता हूँ । खादी गुजरातमें किसी भी स्थानपर पड़ी नहीं रहनी चाहिए। जब कि गुजरातमें अब भी विदेशी कपड़ा पहनने- वाले अथवा मिलका कपड़ा पहननेवाले पड़े हैं तबतक यह कैसे कह सकते हैं कि गुजरात में खादीका उपयोग किया जाता है । इसलिए मुझे उम्मीद है कि जितनी खादी कार्यालयके पास पड़ी है उसे व्यापारी और खादी पहननेवाले व्यक्ति खरीदकर उस कार्यालयको नई खादी भरनेका अवकाश देंगे । कोटकी खादीका भाव आठ आने प्रतिगज और कमीजोंकी खादीका भाव सात आने प्रतिगज है । जो पाठक यह भार कम कर सकते हैं उन्हें मेरी सलाह है कि वे कांग्रेस कमेटीको लिखें और ऐसा करें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २६-२-१९२२