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टिप्पणियाँ

व्यापारी और पतिव्रता स्त्रीकी एक जैसी स्थिति होनी चाहिए। दोनोंको अपने ऊपर पहरा बिठाये जानेकी बातपर लज्जित होना चाहिए। जिस तरह पतिव्रता नारी अपना शील भंग करे तो समाजको भारी आघात पहुँचता है उसी तरह व्यापारी जब वचन भंग करता है तब समाजपर भारी प्रहार करता है। क्या व्यापारी लोग इस धर्मयज्ञमें अपने वचनका पालन करने जितना भाग भी नहीं लेंगे ?

अहमदाबादकी स्वयं सेविकाएँ

रतनपोलमें[१] खादी-प्रचारका काम करनेवाली स्वयंसेविकाओंके कामकी रिपोर्ट मेरे पास पड़ी है। इसमें स्वयंसेविकाओं और विदेशी कपड़ेके व्यापारियोंके बीच हुई बात चीत का और कपड़ा खरीदनेको आई बहनोंके साथ हुई बातचीतका विवरण भी है ।

इन बहनोंने विदेशी कपड़ा खरीदने के लिए आनेवाली बहनोंके साथ जो बातचीत की, उसका परिणाम यह हुआ कि कपड़ा खरीदने के बदले वे वापस चली गईं और उन्होंने वचन दिया कि वे भविष्यमें विदेशी कपड़ा नहीं लेंगी। उन्होंने व्यापारियोंको समझाया लेकिन वे न समझे । उन्होंने तो बहनोंको यह कहकर बहकानेकी कोशिश की : हमारे पास जो माल है उसे तो बेचना ही पड़ेगा, बादमें विदेशी कपड़ा नहीं लेंगे।” सब जानते हैं कि इस कथनमें कुछ सार नहीं है । जो व्यक्ति जेबमें पड़ी बीड़ी अथवा बोतलमें पड़ी शराबको पीनेके बाद बीड़ी अथवा शराब छोड़नेका विचार करता है वह उसे कभी छोड़ ही नहीं सकता । पीनेवाला जब अपने पास पड़ी बीड़ी अथवा शराबको फेंक देता है तभी वह उससे मुक्त होता है । होता यह है कि पास पड़े हुए मालको बेचनेवाले दुकानदारका भण्डार कभी समाप्त ही नहीं होता । इसके अलावा व्यापारियोंने कहा : "हम अगर अभी न बेचें तो हमें जो नुकसान होगा, उसे कौन पूरा करेगा ?” यह कथन अविवेकपूर्ण है । जो व्यक्ति देशकी खातिर इतनी छोटी-सी असुविधाको भी सहन नहीं कर सकता उससे क्या आशा की जा सकती है ? जब बिक्री नहीं होती, या बाजार में मन्दी होती है, या लूटपाट होती है तब उनके उस नुकसानको कौन पूरा करता है ? यह मालूम होनेपर कि अमुक व्यापार त्याज्य है, यदि हम देश- हितकी खातिर उसका त्याग करते हैं तो इसमें क्या आत्मत्याग है यह बात मेरी समझ में नहीं आती ।

लेकिन ऐसी स्थितिमें बहनोंको क्या करना चाहिए ? उन्हें [ व्यापारियोंको ] विनय- पूर्वक समझाना चाहिए, ताने न देने चाहिए बल्कि धैर्यपूर्वक उन्हें लाभालाभकी बात समझानी चाहिए और उसके बाद भी अगर वे न मानें तो शान्त हो जाना चाहिए, लेकिन अधिक वाद-विवाद में पड़कर कटुता नहीं पैदा करनी चाहिए। जिनके पास बहुत सारा विदेशी माल भरा पड़ा हो उनसे आशा रखनेकी अपेक्षा जो थोड़ा-सा विदेशी कपड़ा खरीदने आते हैं उनकी समझपर, उनके देशाभिमानपर अधिक विश्वास रखना ही श्रेयस्कर है।

 
  1. अहमदाबादका एक प्रसिद्ध बाजार ।