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टिप्पणियाँ

  काठियावाड़ में बहुत सारे युवक अन्त्यजोंकी सेवा किया करते हैं। लेकिन अब ऐसे कार्योंका जोड़ नहीं गुणा होना चाहिए। और यदि ऐसा हो तो काठियावाड़पर जो आक्षेप किया जाता है वह दूर हो जायेगा। इस प्रश्नका समाधान काठियावाड़ी यवकोंके धैर्य, उनकी विनयशीलता और धर्मपरायणतापर निर्भर करता है । यदि युवकवर्ग मर्यादा छोड़कर गुरुजनोंकी निन्दा करेगा तो वह अस्पृश्यताका त्याग करनेके अपने विचारोंका प्रसार नहीं कर सकेगा। लेकिन यदि वे अस्पृश्यताको अधर्म मानकर अन्य धर्मोका सूक्ष्म रीतिसे पालन करेंगे तो समाजपर उनकी छाप पड़े बिना न रहेगी ।

मोतीलाल तेजावत और भोल

मेरे सुझावपर श्री मणिलाल कोठारी इस विषयकी जाँच-पड़ताल करनेके लिए सिरोही आदि स्थानोंपर गये थे। उनकी ओरसे जो समाचार प्राप्त हुए हैं उनसे पता चलता है कि भाई मोतीलाल तेजावतने भीलोंमें मुख्य रूपसे मद्यनिषेध और मांसाहार आदि छोड़नेका कार्य किया है। इसमें सन्देह नहीं कि उनकी प्रवृत्तिसे भीलोंमें जागृति आई है। यदि वे भीलोंके झुण्डको लेकर स्थान-स्थानपर न घूमते होते, किसी एक स्थानपर रहते, जिससे उनसे आसानीसे मिला जा सकता तो टीका करनेका कुछ कारण ही न रह जाता । श्री मणिलालकी मार्फत उन्होंने जो पत्र भेजा है उसे मैं प्रकाशित कर रहा हूँ ।[१]

यह पत्र थोड़ा-बहुत अज्ञानसे भरा हुआ है। अंग्रेजोंका तो इस प्रश्नके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है और राज्योंके सम्मुख इस प्रश्नको विधिपूर्वक लाया जाना चाहिए था । श्री मणिलाल कहते हैं कि उन्हें पालनपुर, दाँता और सिरोहीमें राज्योंकी ओरसे पूरी-पूरी मदद मिली है। मोतीलाल तथा भीलोंने भी उनकी बातें सुनी हैं [ और उनका विश्वास है कि ] लोग शान्तिसे ही काम लेना चाहते हैं। मुझे उम्मीद है कि देशी राज्य भीलोंकी बात सुनेंगे और उन्हें न्याय प्रदान करेंगे तो भील सुखी होंगे। मोती- लालसे अगर कुछ भूल हो गई हो तो उसे दरगुजर करके और भीलोंपर उनका जो असर है उसका सदुपयोग करके यदि देशी राज्य भीलोंकी स्थितिको सुधारनेकी ओर ध्यान देंगे तो राजा और प्रजा दोनोंका भला होगा ।

विदेशी कपड़े की दुकानोंपर धरना

मैंने सविनय अवज्ञाके सम्बन्धमें लिखनेका जो वचन दिया था उसकी याद दिलाने के लिए झरियासे मुझे जो पत्र मिला है उसमें एक दुःखद खबर भी है। यह संवाददाता लिखता है कि वहाँके व्यापारियोंने विदेशी कपड़ा न मँगवानेकी जो प्रतिज्ञा ली थी उसे उन्होंने भंग किया है । प्राचीन कालमें व्यापारियोंकी प्रतिज्ञाका जितना मूल्य था आज उतना ही कम हो गया जान पड़ता है। प्रतिज्ञा-भंगकी ऐसी ही खबरें कलकत्तेसे भी आई हैं। अब यह प्रश्न उठता है कि ऐसे समय में अगर धरना

 
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें कहा गया था कि श्री तेजावतने भीलोंमें सत्याग्रहका प्रचार किया जिससे राज्योंके अधिकारी अप्रसन्न हो उठे हैं। न तो इन राज्योंके अधिकारियोंने और न ब्रिटिश अधिकारियोंने ही उनकी प्रार्थनाकी ओर कोई ध्यान दिया ।