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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


परायण, अहिंसक, निडर और निस्स्वार्थ असहयोगी कभी भूल नहीं कर सकता। वह अपनी अन्तरात्मा से पूछकर सुखपूर्वक आगे बढ़ता जाता है ।

इसके विपरीत

उपर्युक्त टिप्पणी में हमने असहयोग के विरुद्ध आचरणका आभास देनेवाले उदा- हरणोंपर विचार किया । इन्दौरसे एक संवाददाता इससे ठीक विपरीत एक उदा- हरण के बारेमें लिखते हैं । वे लिखते हैं कि जब युवराज इन्दौर आनेवाले थे तब इन्दौर छावनी में रहनेवाले तीन सज्जनों, पण्डित आर्यदत्त, सेठ छोटालाल तथा सेठ बद्री- नारायणको छावनी छोड़कर चले जानेका आदेश मिला। उन्होंने इस आदेशकी अवहेलना की। वे पकड़े गये । उन्होंने न वकील नियुक्त किये और न अपना बचाव किया । वे एक मासकी सादी कैद भोग रहे हैं। इस तरह इस उदाहरण में हम देखते हैं कि कांग्रेस कमेटी द्वारा निर्धारित असहयोग करते हुए कुछ व्यक्ति पकड़े गये और जेल गये । यही संवाददाता लिखते हैं कि अन्य चौदह स्वयंसेवक भी पकड़ लिये गये हैं । एक रामनारायण नामक पहलवानको एक सैनिकने बहुत मारा किन्तु उस पहलवान ने शान्तिसे काम लिया हालांकि उसमें सैनिकसे निपट लेनेकी पर्याप्त शक्ति थी ।

"अस्पृश्यता —एक अतिरिक्त अंग "[१]

एक ' अन्त्यज' भाई अमरेलीसे लिखते हैं :

आपकी जन्मभूमि में अन्त्यजोंके प्रति अधिक तिरस्कार है। काठियावाड़ में तो अस्पृश्यताकी बात ही क्या की जाये ? में पोरबन्दरतक हो आया हूँ । राजकोट, भावनगर और अमरेली में दो-चार प्रतिशत कम है लेकिन कुल मिलाकर गुजरातकी अपेक्षा काठियावाड़ में बहुत अधिक है ।

मेरी जन्मभूमि है इससे क्या हुआ ? बापके कुएँमें डूब मरना पुत्रत्वका लक्षण नहीं है । उपर्युक्त पत्रको प्रकाशित करते हुए मुझे अपनी जन्मभूमिपर लज्जा आती है। जिस काठियावाड़ में नरसिंह मेहता - जैसे महान् भक्त हुए, जहाँ सुदामाने जन्म लिया, जहाँ स्वामिनारायणने[२] विहार किया, जहाँ अर्जुन के सखा [ भगवान् श्रीकृष्ण ] ने स्त्री-पुरुषोंको अपने पीछे पागल बना दिया, उस काठियावाड़के बुद्धिमान लोग यदि अधर्मको धर्म मानें, अस्पृश्यताको पुण्य मानकर मनुष्य जातिका तिरस्कार करें तो उसका परिणाम अधोगतिके अतिरिक्त और क्या हो सकता है ?

लेकिन यदि मैं काठियावाड़की आशा छोड़ बैठूं तो मुझे अपनी ही आशा छोड़ देनी होगी । काठियावाड़के नवयुवकोंने खादीनगरमें पाखाना साफ करनेकी हामी भरी थी, इस बातको मैं भूला नहीं हूँ ।[३]

 
  1. ये शब्द सत्रहवीं सदीके प्रसिद्ध कवि भखा भगतके हैं ।
  2. स्वामी सहजानन्द ( १७८१-१८३० ); स्वामिनारायण नामक वैष्णव सम्प्रदायके संस्थापक ।
  3. दिसम्बर १९२१ में अहमदाबादमें हुए कांग्रेस अधिवेशनमें ।