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किसी असहयोगीको देशी राज्योंमें किसीसे अपना पैसा लेना हो तो उसके सम्बन्धमें वह देशी राज्योंकी अदालतोंमें लड़ सकता है । और वहाँ वकीलको भी नियुक्त कर सकता है। हमारा असहयोग देशी राज्यों अथवा उनकी अदालतोंके साथ नहीं है, अतः देशी राज्योंकी अदालतोंके साथका सम्बन्ध सर्वथा त्याज्य नहीं है ।

लेकिन ये सब कार्य उलझन भरे हैं। इसलिए असहयोगीको चाहिए कि वह अपने-आपको ऐसी विषम स्थितिमें न डाले और इसी कारण मैंने अनेक बार कहा भी है कि फिलहाल जहाँतक उनसे बन सके वहाँतक असहयोगियोंका देशी राज्योंके झमेलेमें न पड़ना ही ठीक है, नहीं तो उनके उसीमें उलझ जानेकी सम्भावना है। लेकिन जिसे ऐसा करनेमें कोई आपत्ति नहीं है अथवा अनायास ही कोई ऐसे झगड़े में पड़ जाये और अगर वह कानूनकी शरण लेता है तो इसमें असहयोगकी वर्तमान नीतिके अनुसार मैं कोई बाधा नहीं देखता ।

उपर्युक्त सज्जनोंको देशी राज्योंके प्रश्नको लेकर गिरफ्तार किया गया है । एजेन्सी अधिकारीने देशी राज्योंकी रियायाके अधिकारोंपर प्रहार किया है। इसमें अगर वे सज्जन कुछ कानूनी कार्रवाई करते हैं तो इसमें मुझे कोई अड़चन दिखाई नहीं देती। ब्रिटिश भारतमें उनकी स्थिति असहयोगीकी है, लेकिन वे काठियावाड़में पकड़े गये हैं, अतः वे वहाँ जमानत देकर छूट सकते हैं और अपना बचाव कर सकते हैं।

एजेन्सी भी तो ब्रिटिश साम्राज्यका ही एक अंग है, ऐसा प्रश्न उठ सकता है । इसके अलावा कोई व्यक्ति यह प्रश्न भी कर सकता है कि देशी राज्योंकी अदालतोंमें मुकदमा लड़नेकी बात तो समझमें आती है लेकिन एजेन्सी अदालतोंमें लड़नेकी बात समझ में नहीं आती। इसमें दो पक्ष हैं। एजेन्सी जिस तरह ब्रिटिश साम्राज्यका अंग है उसी तरह देशी राज्योंका भी है। देशी राज्योंके अस्तित्वके कारण ही एजेन्सीका अस्तित्व है । इसीसे देशी राज्योंके प्रश्नोंको लेकर एजेन्सी अदालतमें जाया जा सकता है । लेकिन यदि कोई व्यक्ति एजेन्सीमें असहयोगका प्रचार करनेके लिए पकड़ा गया हो तो न वह अपना बचाव कर सकता है, न जमानत देकर छूट सकता है और इसीलिए मैंने शुरूसे ही यह सलाह दी है कि देशी राज्योंकी हृदमें असहयोग आन्दोलन शुरू नहीं किया जाना चाहिए। वहाँ तो सिर्फ स्वदेशी आदि प्रवृत्तियोंका, जिनके सम्बन्धमें कभी कोई विवाद ही नहीं उठ सकता, विकास किया जाना चाहिए और सो भी आर्थिक और नैतिक दृष्टिकोणको ध्यान में रखकर । और इसीलिए वहाँ कांग्रेस कमेटियों आदिकी भी स्थापना नहीं करनी चाहिए तथा वहाँ जो लोग कांग्रेस कमेटी के सदस्य बनना चाहते हैं उन्हें ब्रिटिश भारतमें स्थापित किसी कांग्रेस कमेटीमें अपना नाम दर्ज करवाना चाहिए ।

इन धर्म-संकटोंसे उबरनेकी एक ही शुद्ध चाबी है, उसका उपयोग करनेसे कभी कोई भूल नहीं हो सकती । यदि हम किसी प्रकारके भय, उदाहरण के लिए जेल जानेके डरसे अथवा स्वार्थसे प्रेरित होकर कोई कदम उठाते हैं तो हमारा वैसा न करना ही अच्छा है। असहयोगीको निडर और निस्स्वार्थ होना चाहिए । सत्य-