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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

झरिया में सविनय अवज्ञा

कांग्रेस सप्ताह के दौरान झरिया के प्रतिनिधियोंको मैंने सलाह दी थी कि वहाँके लोगोंको सक्रिय सविनय अवज्ञाके जंजालमें नहीं पड़ना चाहिए और यह कहा था कि उसपर मैं 'नवजीवन' में एक टिप्पणी भी लिखूंगा। लेकिन मैं भूल गया। अपनी इस भूलके लिए मैं उन भाइयोंसे क्षमा-याचना करता हूँ । झरियाकी स्थिति असाधारण है । वहाँ हजारों मजदूर रहते हैं; और उनके सम्पर्क में आनेवाले मालदार गुजराती, मारवाड़ी, बंगाली तथा अन्य व्यापारी लोग रहते हैं। वहाँ सक्रिय सविनय अवज्ञा करनेका अर्थ होगा वहाँके मजदूर वर्गको जगाना । व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा करनेसे भी मजदूरोंके उत्तेजित हो जानेकी सम्भावना है। इसलिए मैंने यह सलाह दी कि ऐसे स्थान पर फिलहाल तुरन्त ही सक्रिय सविनय अवज्ञा नहीं की जा सकती। मजदूर- वर्गको सक्रिय सविनय अवज्ञामें शामिल करनेका अर्थ होगा शान्ति भंग होनेका खतरा मोल लेना । अतएव मैंने सलाह दी थी कि ऐसे भागों में खादी, चरखा, मद्यपान- निषेध आदि कार्योंको खूब बढ़ाया जाये और झरिया जैसे कोयले की खान है उसी तरह द्रव्यकी खान भी है, इसलिए झरियाको, बिहारकी समस्त प्रवृत्तियोंके लिए जितना धन चाहिए, उतना धन इकट्ठा करके देना चाहिए। वहाँके रामजस बाबू आदि अमीर लोग ऐसे कार्यों में भरपूर सहायता दे सकते हैं और यदि वे बिहार कांग्रेस कमेटी की पैसे सम्बन्धी मुश्किलको दूर करें तथा मजदूरोंमें खादीका प्रचार करें, स्वयं कातें, मजदूरोंको कातना और बुनना सिखायें, मजदूरोंसे शराब छुड़वायें और मजदूरोंको उनके कर्त्तव्य से तथा उनके अधिकारोंसे अवगत करायें तो मैं समक्षूंगा कि उन्होंने असहयोग पूरा योगदान दिया है।

एजेन्सी अदालतोंमें वकालत

एक मित्र लिखते हैं: "कहते हैं आपने ऐसी सलाह दी है कि एजेन्सी अदालतोंमें तो हर कोई असहयोगी वकालत कर सकता है। क्या यह बात सच है ?" मैंने ऐसी सलाह किसीको नहीं दी है। लेकिन अभी हाल ही में काठियावाड़ में श्री मनसुखलाल मेहता तथा मणिलाल कोठारीपर जो मुकदमे चल रहे हैं उनके सम्बन्धमें मैंने यह अवश्य कहा था कि वे एजेन्सी अदालतमें लड़ सकते हैं और इसलिए वे वकील नियुक्त कर सकते हैं । वे दोनों देशी राज्योंकी रियाया हैं और दोनों देशी राज्योंमें अपने और दूसरोंके अधिकारोंकी रक्षाके लिए प्रयत्न कर रहे हैं। देशी राज्योंकी परिस्थितियों- से उत्पन्न होनेवाले मामलोंके सम्बन्धमें वे असहयोगी नहीं हैं। इसलिए यदि वे इस समय देशी राज्योंके मामलोंमें पड़ना चाहते हैं तो उन्हें अदालतों आदिमें से होकर गुजरना होगा नहीं तो वे दीन-दुनिया दोनोंसे जायेंगे ।

लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई वकील जो असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गया है वह एजेन्सी अदालत में जाकर वकालत करे, इसका अर्थ यह भी नहीं है कि कोई असहयोगी जान-बूझकर एजेन्सी अदालतमें जाये, और यह भी नहीं कि किसी व्यक्तिने असहयोगी के नाते एजेन्सीके इलाके में कुछ काम किया हो तो उस सम्बन्धमें वह अपनी ओरसे वकील खड़ा कर सकता है । हाँ, उसका अर्थ यह अवश्य है कि अगर