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१९५. टिप्पणियाँ

कलकत्ताको जेलमें

कलकत्ताकी प्रेसिडेंसी जेलसे हरिलाल गांधी लिखते हैं :[१]

कलकत्ताके कैदियोंकी सजाकी अवधि आधी किये जानेके सम्बन्धमें समाचारपत्रों में जो समाचार प्रकाशित हुआ है वह बादमें अधिकांश कैदियोंके बारेमें निर्मूल सिद्ध हुआ है ।

चौथाई कैसे दी जा सकती है ?

करमसदके[२] बड़े पाटीदारोंने व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा करनेकी तैयारीमें इतना साहस दिखाया था कि वे स्वयं बरबाद होनेके लिए तैयार हो गये थे। अब जब बारडोलीके प्रस्तावके अनुसार उन्हें लगान भरना है तो यह उन्हें अवश्य बुरा लगेगा । और उसमें भी यदि सरकारी अधिकारी वैर निकालनेकी खातिर उनसे चौथाई माँगें तो यह तो उनके लिए असह्य ही हो जायेगा ।

लेकिन सरकारसे हमने मर्यादापालनकी आशा ही कहाँ रखी है ? अगर उसे अवसर मिले तो क्या वह वैर निकाले बिना रह सकती है ? हमारी भलमनसाहत इसमें है कि हम क्रोध न करें और उसे वैर निकालने दें। हम उसके पास इसे माफ करवानेके लिए भी न जायें।

ऐसा जुर्माना भरना तो हमारे प्रायश्चित्तका एक भाग है । जो बरबाद होने के लिए तैयार बैठे हैं उन्हें चौथाई देनेमें भला क्या आपत्ति हो सकती है ?

लेकिन ऐसा जुर्माना देनेवाले यह समझ लें कि स्वराज्य मिलने अथवा समझौता होनेपर यदि वे जुर्माना वापस माँगेंगे तो वह उन्हें वापस मिल सकेगा । जिनसे चौथाई माँगी जाये उनसे मेरा अनुरोध है कि वे उसे चुका दें पर उसका पूरा-पूरा हिसाब रखें।

सत्याग्रहका पन्थ न्यारा है, वह मर्यादापालनका, सहनशीलताका पन्थ है । हमें ऐसा विचार भी नहीं करना चाहिए कि समय आनेपर ऐसे अधिकारियोंसे बदला लेंगे। यदि कोई हमसे वैर निकालता है और हम बदलेमें कुछ नहीं करते तो उसके वैरका संग्रह अन्ततः समाप्त हो जाता है । यह अनिवार्य नियम है कि जिस क्रियाकी प्रतिक्रिया न हो उस क्रियाका अन्तमें नाश हो जाता है । जो इस नियमको जान लेता है वह फिर कभी बदला लेनेका विचार ही नहीं करता ।

 
  1. पत्र यहां नहीं दिया जा रहा है ।
  2. आनन्द ताल्लुके में, जो श्री अब्बास तैयबजीके नेतृत्व में सविनय अवज्ञाको तैयारी कर रहा था ।
२२-३२