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सरकार द्वारा प्रतिवाद
स्वीकार कर चुकी है।" संकेत स्पष्ट रूपसे धनाहा थानेको घटनाकी ओर है, और इस वक्तव्यसे साफ-साफ यह भाव निकलता है कि लूट पुलिस दस्तेके अधिकारीकी आज्ञासे हुई थी और यह तथ्य बिहार सरकार द्वारा स्वीकार किया जा चुका है। मुख्य सचिवने विधान परिषद् में जो बयान दिया था, और जिसकी ओर स्पष्टतः श्री गांधीका संकेत है, उसका सार इस प्रकार है :
"२७ दिसम्बर, १९२१को बैकुंठपुर फैक्टरीके मैनेजर श्री मैकिननसे यह खबर मिलनेपर कि कुछ गाँवों में बहुत ही गड़बड़ है, सशस्त्र पुलिसके सवारोंने पिपरिया, बैरटवा, चन्दरपुर और सिहुलिया गाँवोंमें से मार्च किया। पिपरिया गाँव की लूटके जो आरोप थे, वे जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की गई जाँचमें बिलकुल निराधार निकले हैं। पर, बाकी तीन गाँवोंमें कुछ लूट-पाट जरूर हुई है। जिला मजिस्ट्रेटकी यह राय है कि जो लूट हुई वह योजनाबद्ध नहीं, बल्कि छिटपुट थी। कुछ सवार बगलकी गलियों में निकल गये और उन्होंने लोगोंकी कुछ चीजें उठा लीं। उनके इन्चार्ज इन्स्पेक्टरको इस बातका पता तब चला जब सिहुलिया गाँवके लोगोंने आकर शिकायत की। और तब इन्स्पेक्टरके हुक्मसे सारा सामान उसी समय वापस कर दिया गया। पुलिसके इन्स्पेक्टर जनरलसे प्रार्थना की गई है कि जिन सवारोंके खिलाफ लूटमें भाग लेनेके निश्चित प्रमाण मिले, उनके विरुद्ध अनुशासनकी कार्रवाई की जाये। यदि जाँचके दौरान कुछ और अपराधोंका पता चला, तो बेतियाका सब-डिविजनल अफसर उनपर विचार करेगा । "
सरकारके वक्तव्य से यह चीज साफ हो जाती है कि लूटकी जो खबरें छपी थीं वे बहुत ही अतिरंजित थीं, और जो लूट हुई भी थी वह जाती तौरपर कुछ सवारोंकी कार्रवाई थी। इससे यह भी पता चलता है कि सर- कार अनुशासन भंगको किसी भी ऐसी कार्रवाईको, जैसी कि इन सवारोंने उस अवसरपर की थी, सहन नहीं करेगी ।
श्री गांधीके घोषणा-पत्र में इस सारे मामलेको एक बहुत ही भिन्न रूपमें पेश करनेकी कोशिश की गई है।

मैं इस टिप्पणीको सहर्ष प्रकाशित कर रहा हूँ, परन्तु मुझे यह कहना पड़ेगा कि मेरी इससे कतई तसल्ली नहीं हुई है। मुख्य सचिवके बयान के सारांशमें वह घटना उसकी आधी भी निन्दनीय नहीं रह जाती जितनी निन्दनीय 'सर्चलाइट' (२७-१- १९२२) में प्रकाशित मूल बयानमें दिखती है । वह बयान मैंने पढ़ा है। बिहार विधान परिषद् में मुख्य सचिवपर चारों ओरसे ऐसी बौछार हुई थी कि उन्हें अपने बचावके लिए काफी पैंतरेबाजी करनी पड़ी थी। मुख्य सचिव इस बातको अस्वीकार नहीं कर पाये हैं कि अफसरने खुद लूटमें भाग नहीं लिया था । चम्पारनके इन गाँवोंसे मैं अच्छी तरह वाकिफ हूँ । उनमें कहीं चक्करदार गलियाँ नहीं हैं । लूटके मालको लौटा देनेसे लूट लूट न रहती हो, ऐसी बात नहीं । विधान परिषद् के सदस्य मुख्य सचिवसे