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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हम शिकायतें करते थे। लेकिन अब शिकायत कौन करे, जब हम अपनी ही इच्छासे समझ-बूझकर स्वीकार किये गये अपने प्रस्तावोंपर स्वयं ही अमल नहीं करते ? इस- लिए मैं कांग्रेस तथा खिलाफतसे सम्बद्ध तमाम संगठनोंको दृढ़तापूर्वक सलाह देता हूँ कि वे अपने-अपने क्षेत्रोंमें तमाम शर्तोंके पूरे-पूरे पालनपर अवश्य ध्यान दें। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो आन्दोलनको खतरेमें डालनेकी जिम्मेदारी उन्हींपर होगी, किसी औरपर नहीं । अपने भविष्यको बिगाड़ना या बनाना हमारे ही हाथमें है ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-२-१९२२

१९१. दिल्ली जेलके कैदी

सिवाय एक अप्रासंगिक परेके, मैंने सारा पत्र[१]ज्योंका-त्यों दे दिया है, यहाँतक कि वे विशेषण भी नहीं हटाये हैं जो सजीव होते हुए भी चोट पहुँचानेवाले नहीं हैं । कोई भी निष्पक्ष प्रेक्षक यह समझ सकता है कि इन रहस्योंके उद्घाटनसे जो कटुता पैदा हो गई है, सम्बन्धित पक्ष, चाहे वह कितने ही उच्च स्थानपर आसीन क्यों न हो, उसे निरे खण्डनसे मिटा नहीं सकेगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-२-१९२२

१९२. सरकार द्वारा प्रतिवाद

१. बिहार सरकारकी ओरसे

महामहिम वाइसरायके नाम मेरे घोषणा-पत्रका भारत सरकारने जो उत्तर दिया था, उसके प्रत्युत्तरमें मैंने एक वक्तव्य दिया । अब बिहारके प्रचाराधिकारीने उस वक्तव्यका निम्नलिखित उत्तर प्रकाशनार्थ भेजा है :

श्री गांधी द्वारा ७ फरवरीको बारडोलीसे जारी किये गये घोषणा-पत्रमें "गैरकानूनी दमन" की कुछ सरकारी कार्रवाइयोंका उल्लेख किया गया है। उनके विचारमें इन कार्रवाइयोंसे सविनय अवज्ञा आरम्भ करनेका औचित्य सिद्ध होता है । जो मिसालें दी गई हैं, उनमें एक यह भी है: एक अफसर और उसके दस्ते द्वारा, बिना किसीकी आज्ञाके, गाँवों की लूट, जिसे बिहार सरकार
 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें गांधीजीने दिल्ली जिला कांग्रेस कमेटीके मन्त्री, हादी हसनके उस पत्रको टीका की है, जिसमें दिल्ली जेलके असहयोगी बन्दियोंके साथ किये गये दुर्व्यवहारका वर्णन किया गया था । वह पत्र दिल्लीके मुख्य आयुक्त द्वारा इस सिलसिलेमें जारी की गई एक प्रेस विज्ञप्तिके उत्तर में लिखा गया था ।