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हमारी ढील


पड़ा जिसमें जनता से दूर, जेल चले जानेवाले उन अनुभवी लोगोंको भी काम करनेमें कठिनाई महसूस होती ।

इस दलील के पक्ष में तो बहुत-कुछ कहा जा सकता है। इसके लिए किसीपर दोषारोपण करने की आवश्यकता नहीं। लेकिन हमें वस्तुस्थितिकी ओरसे आँख न मूँद लेनी चाहिए, बल्कि हमें दृढ़ता और साहसके साथ उसका सामना करना चाहिए और हमें स्वयं अपनी कमियाँ दूर करनी चाहिए। संसारमें ऐसी किसी सेनाको आजतक विजय नहीं प्राप्त हुई है जिसके सैनिकोंमें सैनिकों के आवश्यक गुण न हों । शान्ति सेनामें तो उसके सैनिकोंके लिए निर्धारित गुणोंकी और भी अधिक आवश्यकता है । यह कहने से काम नहीं चलेगा कि आदर्श बहुत ऊँचा है। जो अफसर निश्चित मानसे कम दरजेके लोगोंको जान-बूझकर भरती करता है वह अपनेको अप्रामाणिकताका दोषी बनाता है । यदि निश्चित शर्तोंपर रंगरूट न मिलें, तो उसे प्रधान दफ्तरमें सूचना दे देनी चाहिए; किन्तु उनका उल्लंघन तो उसे कदापि न करना चाहिए ।

मैंने स्वयं ही पिछले साल दिसम्बर में कांग्रेस - पण्डालमें मौजूद सभी श्रोताओंको कांग्रेस द्वारा निर्धारित शर्तें पूरे विवरणके साथ पढ़कर सुनाई थीं।[१]अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और कार्य समितिने उनपर सविस्तार चर्चा की थी और फिर मैंने कई अनौपचारिक चर्चाओं में विभिन्न प्रान्तोंके प्रतिनिधियों और दर्शकोंको वे शर्तें समझाई थीं । इसलिए यह दलील नहीं मानी जा सकती कि शर्तें इतनी कठिन हैं कि उनका पालन नहीं किया जा सकता । प्रतिनिधियोंको उनकी पूरी-पूरी जानकारी थी। लगभग ६,००० प्रतिनिधि मौजूद थे । वे अपने-अपने क्षेत्रोंके प्रतिनिधि थे, इसलिए शर्तें पूरी करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए थी ।

यदि केवल ३०० स्वयंसेवक ऐसे हों जो शर्तोंको खूब अच्छी तरह समझते हों और उनका पालन करते हों, तो उतने ही मेरे लिए काफी हैं; पर इसके बजाय यदि ३०,००० स्वयंसेवक ऐसे हों जो न तो शर्तोंको जानते हों और न उनकी परवाह ही करते हों, तो मुझे उनके भरोसे किसी लड़ाईका नेतृत्व करना स्वीकार न होगा । कारण स्पष्ट है। पहली स्थितिमें मेरे पास ३०० ऐसे पक्के सिपाही होंगे जो मेरी सहायता करेंगे, जब कि दूसरी स्थितिमें ३०,००० लोगोंका भार मुझे वहन करना होगा । वे स्वयंसेवक नहीं होंगे, साधारण आदमी-भर होंगे, जिनका वजन मुझे ही ढोना होगा । पहले ३०० स्वयंसेवक तो मेरी सहायता करेंगे, मेरी आज्ञा मानेंगे, लेकिन ३०,००० लोग मेरी आज्ञाओंका पालन नहीं करेंगे और उनका भार मेरे लिए असहनीय बन सकता है । अतएव हमें कार्य समितिके तमाम प्रस्तावोंके अनुसार पूरी तरह काम करनेका निश्चय कर लेना चाहिए। ये प्रस्ताव हमारे उस त्वरित और व्यावहारिक कार्यक्रम अभिन्न अंग हैं, जिनकी समुचित पूर्तिपर ही भारतका भविष्य, खिलाफत और पंजाब के अन्यायोंका प्रतिकार और स्वराज्यकी प्राप्तिका दारोमदार है । यदि प्रस्तावोंपर पूरा-पूरा अमल न किया जाये, तो उनका कोई मतलब ही नहीं होता। बीते हुए दिनोंमें, जब सरकारको सम्बोधित हमारे प्रस्तावोंपर वह अमल नहीं करती थी तब,

 
  1. देखिए " भाषण : अहमदाबादके कांग्रेस अधिवेशनमें – १, २८-१२-१९२१ ।