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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सन्देह नहीं कि हम शीघ्र ही अपने तीनों लक्ष्य प्राप्त करनेमें सफल हो जायेंगे। मैं एक क्षण के लिए भी यह मानने को तैयार नहीं कि कांग्रेस के कार्यकर्त्ता देशमें मौजूद गुण्डागर्दीकी ताकतोंपर काबू पानेमें असमर्थ हैं। बात सिर्फ इतनी है कि हमने इनपर काबू पानेके लिए पूरे दिलसे कोशिश ही नहीं की है। [१]

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-२-१९२२

१९०. हमारी ढोल

एक विश्वसनीय व्यक्तिने मुझे लिखा है कि इलाहाबाद और बनारस में स्वयंसेवकों- की भरती के मामले में उनकी योग्यताओंका कोई ध्यान नहीं रखा गया है। मुश्किलसे पचास स्वयंसेवक ऐसे दिखाई पड़ते हैं जो सिरसे पैरतक हाथकते खद्दरके वस्त्र पहने हों । कुछ ऊपरसे खद्दर पहने रहते हैं, पर अन्दर विदेशी वस्त्र ही पहनते हैं । उसी पत्र - लेखकका कहना है कि कुछ स्वयंसेवक जब-तब शराब भी पी लेते हैं और अहिंसा में उनके विश्वासकी कोई जाँच नहीं की गई है और बहुत-से मामलोंमें तो स्थानीय कांग्रेस के पदाधिकारियोंका उनपर कोई नियन्त्रण ही नहीं रहा है। अधिकृत रिपोर्टके अनुसार संयुक्त प्रान्तमें ९६,००० स्वयंसेवकों की भरती हुई है। यदि यह सच है कि वहाँ इतने सारे स्वयंसेवक भरती किये गये हैं और उनमें से अधिकांश कांग्रेसकी शर्तोंका पालन नहीं करते तो उनका न होना ही ज्यादा अच्छा था । मैंने जो शिकायतें की हैं, वे अपने-आपमें बहुत भयंकर हैं, किन्तु ऐसा न समझना चाहिए कि मेरी कुल शिकायतें उतनी ही हैं, जितनीका मैंने उल्लेख किया है। कलकत्तासे भी ऐसा ही समाचार मिला है और वह भी एक विश्वस्त सूत्रसे ही । उसका कहना है कि जेल जानेवालों में सैकड़ों ऐसे हैं जो कांग्रेसकी प्रतिज्ञाके बारेमें कुछ भी नहीं जानते, खद्दर नहीं पहनते, और इतना ही नहीं, वे भारतीय मिलोंका नहीं बल्कि विदेशी वस्त्र पहने हुए जेल गये हैं और अहिंसाकी उन्हें तनिक भी शिक्षा नहीं मिली हैं। रोहतकसे एक व्यक्तिने लिखा है कि उस जिलेमें कई जगह के स्वयंसेवक कांग्रेस पदाधिकारियोंके आदेश नहीं मानते और उनको बड़ी मुश्किलमें डाल देते हैं ।

यदि पूर्वोक्त शिकायतोंमें दस प्रतिशत भी ठीक हों तो मुझे डर है कि शायद हम देशमें आई इस आश्चर्यजनक जागृति के साथ कदम मिलाकर नहीं चल पाये हैं, और कांग्रेस में आनेवाले इन नये लोगोंको भली-भाँति सँभाल नहीं पाये हैं। हो सकता है कि इसमें दोष किसीका भी न हो । आम सभाओं और स्वयंसेवकों के बारेमें सरकारने धड़ा- धड़ अधिसूचनाएँ जारी करके हमारे लिए कठिन अवसर उपस्थित कर दिया था । उसकी चुनौतीको स्वीकार करना था और वह की गई । नये और अनुभवहीन लोगोंके सिर कामकी जिम्मेवारी आती गई और उन्हें ऐसी कठिन परिस्थितिका सामना करना

  1. इस लेखके उत्तर में लिखा गया पॉल रिचर्डका लेख १६-३-१९२२ के यंग इंडिया में " उनका दुःख मेरा अपना दुःख " ( हिज सौरो इज माई सॉरो ) शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था ।