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मेरे दुःखका अन्त नहीं


माननाकी कोई बात नहीं थी, और मैं आशा करता हूँ कि इस मुलाकात में मतभेदका जिस भौंडे ढंगसे उल्लेख हुआ है, उससे महान् महाराष्ट्र पार्टीके सदस्योंका मन खट्टा नहीं होगा । राष्ट्रीय आन्दोलनमें उस दलके लोगोंके हार्दिक सहयोगको मैं बहुत अधिक मूल्यवान मानता हूँ और उन्हें साथ लेकर चलनेके लिए मैं अपनी आन्तरिक इच्छाके भी खिलाफ उतनी दूरतक चलनेको तैयार रहता हूँ, जितनी दूर चलनेसे मुझे अपने सिद्धान्तकी बलि न देनी पड़े।

एम० पॉल रिचर्डने अहिंसा के सम्बन्धमें मेरे विचारोंको जिस प्रकार प्रस्तुत किया है वह वास्तवमें उसका एक मखौल-भर है। मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि उन्होंने मुझे जैसा समझा है, उसी रूपमें प्रस्तुत किया है। जब मैं कहता हूँ कि मैं अपने देशसे भी अधिक अपने धर्मको महत्त्व देता हूँ और इसलिए मैं पहले एक हिन्दू हूँ और बादमें राष्ट्रवादी, तो एक मानेमें निश्चय ही यह कथन सच है । लेकिन केवल इसी कारण मैं किसी भी सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रवादीसे कम राष्ट्रवादी नहीं हो जाता । इससे मेरा अभिप्राय केवल यह है कि मेरे देशके हित मेरे धर्मके हितोंके अनुरूप हैं । इसी प्रकार, जब मैं कहता हूँ कि मैं अपनी निजी मुक्तिको अन्य सभी चीजोंसे अधिक—भारतकी मुक्तिसे भी अधिक महत्त्व देता हूँ तो इसका यह मतलब नहीं कि मेरी निजी मुक्ति के लिए भारतकी राजनीतिक या अन्य किसी प्रकारकी मुक्तिके बलिदान की आवश्यकता है। ठीक इसी अर्थमें अहिंसाकी कीमतपर मुझे भारतकी मुक्ति स्वीकार नहीं है। इसका मतलब यह है कि अहिंसा के बिना या हिंसा के जरिए भारत कभी भी स्वाधीनता प्राप्त नहीं कर सकता। हो सकता है कि इस प्रकारका विचार रखकर मैं बिलकुल ही गलती कर रहा हूँ, लेकिन यह बात दूसरी है; बहरहाल मेरा विचार यही है और यह प्रतिदिन दृढ़ होता जा रहा है। मैंने बहुत बार कहा है कि अन्य देशोंके लिए भले ही कुछ भी ठीक हो, परन्तु भारतकी मुक्ति अहिंसाके मार्ग- पर चलनेसे ही होगी। अगर एम० पॉल रिचर्डने मुझे ठीकसे समझा होता तो वे अपने प्रश्नकर्ताको यह कहकर शान्त कर देते कि मेरा विश्वास है कि भारत केवल अहिंसा के माध्यम से ही अपनी स्वतन्त्रता जल्दी प्राप्त कर सकता है, और इसीलिए जबतक देशको मेरा निर्देशन स्वीकार है तबतक उसे मेरी सीमाओंको स्वीकार करना पड़ेगा, तथा इसलिए मुझे वह तबतक अपना पथ-प्रदर्शन करने दे जबतक उसे यह विश्वास हो कि अपने लक्ष्यकी प्राप्तिके लिए उसके पास सत्य और अहिंसाके अलावा और कोई चारा नहीं है। एम० पॉल रिचर्डने यह कहकर स्थितिको और भी खराब कर दिया है कि यदि भारतकी स्वाधीनता अहिंसापर निर्भर है तो वह उसे कभी भी प्राप्त नहीं कर सकेगा। समझमें नहीं आता कि देशने स्वाधीनताकी दिशामें जो आश्चर्यजनक प्रगति की है, उसे उन्होंने कैसे नजरअंदाज कर दिया । वास्तवमें, मेरा दावा है कि भारत आज सारतः स्वतन्त्र हो चुका है, उसने अपना मार्ग पा लिया है, वह आज अपनी अस्मिताको दृढ़तापूर्वक प्रकट कर रहा है; उसकी सन्तानने- सहस्रों पुरुषों और स्त्रियोंने - बदलेकी भावनाके बिना बलिदान करनेका श्रेष्ठ गुण सीख लिया है, और मुझे दृढ़ विश्वास है कि यदि कार्यकर्तागण उस रचनात्मक कार्यक्रमको, जो उनके सामने प्रस्तुत किया गया है, लगन और सचाईके साथ पूरा करेंगे तो इसमें कोई