आज सबेरे श्री स्टोक्स[१] गिरफ्तार कर लिये गये।
आपका निष्ठापूर्ण साथी,
लाजपतराय
प्रातः ७ बजे
पाठक मानेंगे कि यह पत्र[२] प्रस्तुत करके मैंने ठीक ही किया है। प्रत्येक नेताने जेल जानेकी सम्भावनाको ध्यान में रखकर व्यवस्था कर रखी है यह बात मार्केकी है। निःसन्देह लालाजीने जो कुछ भी किया है उसके अलावा और कुछ नहीं कर सकते थे। उनकी हदतक मैं चाहता जरूर था कि यदि सहज भावसे सम्भव हो सके तो वे कांग्रेसका अधिवेशन[३] हो चुकने तक गिरफ्तार होनेका प्रयत्न न करें तो अच्छा हो। किन्तु उनके सामने जो परिस्थितियाँ थीं उनमें उद्देश्यको आघात पहुँचाये बिना बैठकसे गैरहाजिर होना सम्भव नहीं है। यदि एक सेनापति प्रस्तुत युद्धसे बचता है तो वह सेनापति ही नहीं रह जाता। मुझे तो लालाजीके प्रत्येक कार्यमें विवेकशीलता तथा शान्त शौर्य ही दिखाई देता है। मैं लालाजी द्वारा सिखोंकी प्रशंसाका पूरी तरह अनुमोदन करता हूँ। उनकी दृढ़ता, धार्मिक उत्साह, शान्ति तथा कष्ट-सहिष्णुतापर मैं बिलकुल मुग्ध हूँ। देशमें आज जो कुछ हो रहा है वह सब नवजन्मदायी प्रसववेदना-सा दिखाई देता है। भगवान् करे कि हमारे निर्धारित लक्ष्यकी पूर्तिकी दिशामें कोई अविवेकपूर्ण कार्य न हो, हिंसाका विस्फोट हमारी अबाध प्रगति में बाधक न हो।
{{left[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५-१२-१९२१}}
४. ईसाई तथा स्वराज्य
'यंग इंडिया'
आज स्वराज्यके प्रति भारतीय ईसाइयोंके दृष्टिकोणके बारेमें अनेकानेक प्रश्न किये जा रहे हैं; इसलिए में विवेकशील ईसाइयोंके एक विशाल समुदायके प्रतिनिधिकी तरह आपके पाठकोंका ध्यान कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण तथ्योंकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ जिनसे हमारे बहुत ही कम हिन्दू और मुसलमान भाई परिचित हैं।