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मेरे दुःखका अन्त नहीं


और जिनके बारेमें वह खुलेआम बहस करना पसन्द नहीं करता । मेरे सामने पहलेसे ही दुःखके अनेक कारण मौजूद हैं। अब जिस मुलाकात के विवरणको प्रकाशित करनेके लिए मुझसे कहा गया है, उससे एक और भी कारण प्रस्तुत हो गया है। वह इस प्रकार है :

प्रश्न : बारडोली में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के पिछले स्थगन के बादसे असहयोगियों में ऐसे लोगोंकी संख्या बढ़ रही है जो महात्माजीके विचारोंको नहीं समझते। इस सम्बन्धमें आपका क्या विचार है ?
उत्तर : महात्मा गांधीके रुखके बारेमें सब कुछ समझ पाना बहुत आसान है, यदि कोई यह न भूले कि उनका वास्तविक ध्येय वह नहीं है जो आमतौरसे लोग समझते हैं, बल्कि वह है जो उन्होंने कुछ दिन पहले इन शब्दोंमें मेरे सामने स्पष्ट किया था : “ में भारतकी स्वाधीनताके लिए नहीं, वरन् संसारमें अहिंसाकी स्थापना के लिए काम कर रहा हूँ, तथा मुझमें और श्री तिलकमें यही अन्तर है। श्री तिलकने एक बार मुझसे कहा था, 'मैं अपने देशकी स्वाधीनता के लिए सत्यका भी बलिदान कर सकता हूँ; परन्तु में सत्यके लिए स्वाधीनताके बलिदान के लिए भी तैयार हूँ ।" इन शब्दोंके प्रकाशमें आप राष्ट्रीय आन्दोलनको तबतक स्थगित करनेका कारण समझ सकते हैं जबतक कि भारत में सर्वत्र हिंसात्मक भावनाकी जड़ नहीं हिल जाती। और यह स्थिति तो शायद इस संसार में कभी न आये ।
जिस प्रकार श्रीमती बेसेंट और नरमदलीय लोगोंके विचारोंको इस सूक्तिमें प्रकट किया जा सकता है कि "किसी भी कीमतपर कानून और व्यवस्था", उसी प्रकार महात्माजीके विचारोंको इन चन्द शब्दोंमें ही प्रकट किया जा सकता है -'किसी भी कीमतपर अहिंसा'; और जो श्रीमती बेसेंट और नरम- दलीय लोग चाहते हैं वही सरकारकी इच्छा भी है। लेकिन इस सबके पीछे एक और भी स्वर है, राष्ट्रकी आत्माका स्वर, जिसका महत्त्व सबसे अधिक है । वह स्वर है : "किसी भी कीमतपर एक नया कानून और एक नई व्यवस्था ।"
भारत, एशिया और समस्त संसारमें एक नई चेतनाका उदय हुआ है, और मेरा विश्वास है कि इस नई चेतनाको प्रकट करनेवाली यह इच्छा ही अन्तमें विजयी होगी ।

एम० पॉल रिचर्ड के साथ मेरी भेंट बड़ी अच्छी रही थी । हमने कई घंटे बड़े आनन्दके साथ गुजारे थे । मैं तुरन्त ही यह समझ गया कि कुछ बातोंमें जीवन सम्बन्धी हमारे दृष्टिकोणमें मूलभूत अन्तर है, लेकिन इस बातको मैंने जरा भी महत्त्व नहीं दिया । हम एक-दूसरेसे मामूली जान-पहचान के व्यक्तियोंके रूपमें मिले और घनिष्ठ मित्रोंके रूपमें जुदा हुए। यद्यपि अब मुझे पॉल रिचर्डने जो कहा है उसकी आलोचना