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मौलाना अबुल कलाम आजाद


और कुछ नहीं कर सकता वरना उसे संसार भर की घृणाका पात्र होना पड़ता । बहिष्कारके प्रभावको इससे नहीं मापा जा सकता कि कितने लोगोंने वकालत त्यागी । इसकी सही माप है उस गौरवका तिरोहित हो जाना जो अभी दो ही साल पहलेतक अदालतोंको सुशोभित करता था। अब तो वे सर्राफों और सटोरियोंके अड्डोंके रूपमें मौजूद हैं । लेकिन अब राष्ट्रीय और यहाँतक कि वैयक्तिक स्वतन्त्रताके भी आश्रय के रूपमें उनका महत्त्व समाप्त हो गया है । अब यह आश्रय उन मजबूत दिलोंमें मिलेगा, जिन्हें राष्ट्र बड़ी तेजीसे विकसित कर रहा है ।

मौलाना का यह वक्तव्य हालांकि अदालतको सम्बोधित करता है, लेकिन अदालतके लिए नहीं है । यह जनताके लिए है । वास्तवमें यह एक ऐसा भाषण है, जिसके लिए आजीवन कैदकी सजा मिल सकती है। साल-भर की सख्त कैदकी सजा सुनाई जाने के बाद मौलाना अपना आश्चर्य बखूबी दो शब्दोंमें इस तरह व्यक्त कर सकते हैं: “मेरी जो अपेक्षा थी, उससे तो यह बहुत ही कम रही !"

निम्नलिखित अंशोंसे, जिन्हें मैं इस वक्तव्यमें से उद्धृत कर रहा हूँ,[१]पाठक स्वयं अपने निष्कर्ष निकाल लेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-२-१९२२

१८६. मौलाना अबुल कलाम आजाद

बेगम अबुल कलाम आजादने मुझे नीचे लिखा तार-संवाद डाक द्वारा भेजा है :[२]

मेरे पति मौलाना अबुल कलाम आजादके मामलेका फैसला आज सुना। दिया गया। उन्हें सिर्फ एक सालकी सख्त कैदकी सजा दी गई है। यह तो मेरी आशासे बहुत ही कम सजा है। ... मैं आपको यह सूचित करनेकी धृष्टता करती हूँ कि उनकी कैदसे बंगालके राष्ट्रीय कार्यकर्त्ताओंके बीच जो स्थान खाली हुआ है, उसकी पूर्ति करनेके लिए में तैयार हूँ। उनके तमाम कार्य उसी तरह जारी रखे जायेंगे ।...इसके पहले उनकी चार वर्षकी नजरबन्दीके समय में पहला इम्तहान दे चुकी हूँ, और मुझे विश्वास है कि इस दूसरे इम्तहान में भी खुदाकी मेहरवानीसे कामयाबी हासिल करूँगी । आजसे मैं अपने भाईकी मदद से बंगाल प्रान्तीय खिलाफत समितिसे ताल्लुक रखनेवाले तमाम फर्ज अदा करूँगी। मेरे पतिने आपको प्रेम और श्रद्धाके साथ सलाम कहा है और यह पैगाम भेजा है : "मौजूदा हालत में सरकार और मुल्क, दोनों तरफके लोग किसी तरहके समझौते के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं । हमारा फर्ज तो सिर्फ यही है।
 
  1. ये अंश यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं ।
  2. यहाँ केवल कुछ अंश ही दिये जा रहे हैं ।