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टिप्पणियाँ


कि अन्यायका सवाईके साथ उद्घाटन करने से उसकी उग्रतामें हमेशा कुछ-न-कुछ कमी हो जाती है । मैंने यह भी पाया है कि अत्युक्तिके फलस्वरूप आम तौरसे उसकी उग्रता बढ़ जाती है । सत्य असत्यवादी आदमीको भी उदार बना देता है । असत्य उसे हठी ही बनाता है, क्योंकि सत्यसे वह अनभिज्ञ होता है ।

शराबसे मुक्तिकी बजाय स्वतन्त्र भारत

जब मैं ये टिप्पणियाँ लिख रहा था तो मेरे सहायकने 'लीडर' की एक कतरन मुझे दी, जिसमें पण्डित गोपीनाथ कुँजरूका पत्र उद्धृत था । इस पत्र में उन्होंने जरा भी उत्तेजित हुए बिना बहुत शान्तिसे यह बताया था कि जब वे आगरामें एक रोगीके शरीरपर लगाने के लिए ब्रांडी खरीदने गये तो उनके और उनके मित्रके साथ कैसा व्यवहार किया गया । पण्डित कुंजरू द्वारा वास्तविक स्थिति के बारेमें हर प्रकारसे आश्वासन दिये जाने के बावजूद स्वयंसेवकोंने उन्हें ब्रांडी नहीं खरीदने दी । यह न केवल अहिंसा नहीं है, बल्कि शुद्ध हिंसा है । शान्तिपूर्ण धरनेका अर्थ यह नहीं है कि शारी- रिक हिंसा के प्रयोगके अलावा दूसरे हर प्रकारके दबावसे काम लिया जा सकता है। यदि वे स्वयंसेवक अपनी प्रतिज्ञाके प्रति सच्चे होते तो उन्होंने पण्डित गोपीनाथ और उनके मित्रको बेरोक-टोक जाने दिया होता। धरना देनेवालोंका कर्त्तव्य केवल इतना है कि वे शराब पीनेवालों को शराबके दुर्गुणोंके प्रति आगाह करें, यह नहीं कि अगर वे नहीं सुनते तो उन्हें तंग करें या उनके साथ रोक-टोक करें। यदि यह मानकर कि शराब से परहेज लोगोंके लिए हितकर है, हम उनके ऊपर यह परहेज थोप सकते हैं तो फिर निश्चय ही अंग्रेज शासक और उनके भारतीय समर्थक भी बिलकुल यही कार्य कर रहे हैं। वे भी हमारे ऊपर वर्तमान प्रणाली इसलिए लादे हुए हैं कि उनका विश्वास है, यह हमारे लिए हितकर है । इसलिए यदि स्वराज्य चाहनेवाले स्वयं- सेवक इस प्रकारकी छूट ले सकते हैं, जैसी कि उन्होंने पण्डित गोपीनाथ कुंजरू के साथ निश्चित रूपसे ली है, तो इसका यह मतलब है कि वे प्रणालीको नहीं बल्कि सिर्फ शासकोंको बदलना चाहते हैं । यदि स्वतन्त्रताकी बलि देकर संयम और शराबबन्दी हासिल करनी है, तो मैं शराबसे मुक्त और संयमका पालन करनेवाले भारतकी बजाय स्वतन्त्र भारत ही अधिक पसन्द करूँगा ।

विदेशी कपड़ा

जब कि एक ओर उपर्युक्त उदाहरण-जैसी घटनाओंसे शराबबन्दीके लिए धरना देनेके प्रति भी सतर्कता बरतने की आवश्यकता सिद्ध होती है, दूसरी ओर दो जगहों से शिकायत मिली है कि कार्य समितिने विदेशी कपड़े की दुकानोंपर धरना बन्द करा दिया है। इस तरहके किसी कार्यक्रमका स्थगन अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके निर्णयपर निर्भर करता है । परन्तु यह चाहते हुए भी कि विदेशी कपड़े के इस्तेमालपर पूरी रोक लगे, अगर धरने में जरा भी जोर-जबरदस्ती होती है, तो कमसे कम में इसका समर्थन नहीं कर सकता। देश के सामने सबसे अधिक स्पष्ट प्रश्न यह है कि क्या हमें विचार, वाणी और कर्म में पूर्ण अहिंसाका पालन करना है, या अपने प्रयोजनके अनु-