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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

डा० किचलू — नं० ७७६

डा० किचलूका पत्र, जो अन्यत्र उद्धृत[१]है, सन्ताप और सन्तोष दोनों भावोंके साथ पढ़ा जायेगा । हम उनका वजन बढ़ जानेसे और उनकी प्रफुल्लतासे ईर्ष्या कर सकते हैं, लेकिन बम्बई सरकार जिस प्रकारका व्यवहार राजनीतिक बन्दियोंके साथ कर रही है, उसके लिए हम उसे बधाई नहीं दे सकते ।

डा० किचलूने इस वास्तविकताकी ओर ठीक ही ध्यान आकर्षित किया है कि जब पंजाबमें उनपर अधिक गम्भीर अपराधका अभियोग लगाया गया था, वहाँ उनके साथ अच्छा बरताव किया जाता था, और अब जब कि अभियोग वास्तवमें कुछ भी नहीं है, उनके और उनके साथी बन्दियोंके साथ सामान्य अपराधियोंके जैसा बरताव किया जा रहा है । परन्तु इस पत्र-व्यवहारमें विशेष दिलचस्पीका केन्द्र है कर्नल वैजवुडका[२]स्पष्टतावादी पत्र, जिसे डा० किचलूने प्रकाशनार्थं भेजा है। कर्नल वैजवुड द्वारा उल्लिखित " गांधीवाद और कुछ नहीं केवल सत्य और सरलताकी पुनः स्थापना है । सत्यको सदा सरल होना चाहिए। और जो सरल और सत्य है, उसका हिंसासे कोई वास्ता नहीं है । गांधीवाद " उन्हीं प्राचीन सिद्धान्तोंका पुनः प्रवर्तन है जो समान रूपसे पूर्व और पश्चिम दोनोंके हैं। असहयोग " जियो और जीने दो" के सिद्धान्तका समर्थन करता है । हिंसापर आधारित भयानक अलगाव ही आजकलका आदर्श है । समानता और भाईचारेकी भावनाका केवल नाम ही रटा जाता है । पारस्परिक व्यवहार पारस्परिक प्रेमपर आधारित नहीं; बल्कि पारस्परिक घृणा और तज्जनित हिंसा के लिए तत्परतापर आधारित है। फिर भी, अभी "गांधीवाद " की बात करनेका समय नहीं आया है । भारतको अभी परीक्षा देनी है और हिंसापर अहिंसाकी श्रेष्ठता सिद्ध करनी है, इसके बाद ही इस आदर्श के कुछ समीप पहुँचा जा सकेगा ।

एक भूल सुधार

२ फरवरीके 'यंग इंडिया' में मैंने पण्डित अर्जुनलाल सेठीके पुत्रका एक पत्र[३] उद्धत किया था, जिसमें उन्होंने जेल में पण्डित सेठीके साथ किये जानेवाले बरतावके बारेमें लिखा था। अब मुझे पता चला है कि उनके पुत्रको गलत सूचना मिली थी । अर्जुनलालजीको ब्रांडी या अंडे नहीं दिये गये । यह भी बताया गया है कि उन्हें खाना और कपड़ा ठीकसे दिया जा रहा है। वैसे पत्र लेखकोंने आम तौरसे बिलकुल ठीक सूचनाएँ दी हैं, फिर भी समाचार भेजते समय बहुत अधिक सावधानीसे काम लेना चाहिए। अगर पत्र लेखक गलती भी करें तो उन्हें बातको घटाकर ही कहनेकी गलती करनी चाहिए। अत्युक्तिसे हम न केवल बदनाम होते हैं, बल्कि इसका विरोधीपर भी उलटा असर होता है, जब कि कथनकी सत्यता से अभियुक्तके समक्ष उसका दोष प्रकट हो जाता है, फिर भले ही वह उसे स्वीकार करे या न करे। मैंने बराबर यह पाया
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है ।
  2. इंग्लैंडकी लेबर पार्टीके नेता और संसद सदस्य, जो दिसम्बर १९२० में भारत आये थे और कांग्रेसके नागपुर - अधिवेशन में शामिल हुए थे ।
  3. देखिए " टिप्पणियाँ ", २-२-१९२२ का उपशीर्षक " धार्मिक स्वतन्त्रतामें हस्तक्षेप " ।