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टिप्पणियाँ
संयुक्त प्रान्तके जेलोंके इंस्पेक्टर जनरल जल्दी ही इस जेलके मुआइनेपर आनेवाले हैं और यह मामला उनके सामने पेश किया जायेगा । आशा है, वे इसे सन्तोषजनक रूपसे हल कर देंगे, बशर्ते कि स्थानीय सरकारके किसी आदेशने उनके विवेकको पहले ही न जकड़ लिया हो । यदि ऐसा हुआ तो निश्चय ही हमारा यह कर्त्तव्य होगा कि हम इस आदेशको न मानें, चाहे इसका जो भी परिणाम हो ।

खद्दरकी टोपी के साथ मुश्किल असलमें सिद्धान्तकी है, जिसपर किसी प्रकारका आत्मसमर्पण नहीं किया जा सकता । सादी कैद की सजावाले कैदियोंको अपनी पोशाक पहनने का अधिकार है । इसलिए उन्हें अपनी टोपियोंसे वंचित करना उनका अपमान करना है । मुझे आशा है कि मौलवी साहबकी आशाके अनुरूप इंस्पेक्टर जनरलने इस समस्याको निबटा दिया होगा ।

जेलों में सरकारसे लड़ाई लड़नी पड़े, यह कोई खुशीकी बात नहीं है। उन्हें तो ऐसे तटस्थ क्षेत्रकी तरह माना जाना चाहिए, जहाँ हर प्रकारकी शत्रुता समाप्त हो जाती है । मृत्यु अनेक प्रकारके विवादोंको समाप्त कर देती है। कैद भी एक प्रकारकी मृत्यु है - नागरिक स्वतन्त्रता की । क्या यह सम्भव नहीं कि राजनीतिक वैरको जेलकी दीवारोंके बाहर ही रहने दिया जाये ? परन्तु मैं जानता हूँ कि इस सरकारसे, जो भद्रताका केवल स्वाँग भरती है, लोहे के सीखचोंके पीछे भी सभ्य व्यवहारकी आशा करना दुराशा मात्र है । हमसे स्वतन्त्रताका जो इतना कड़ा मूल्य लिया जा रहा है, उसके कारण यह हमें और भी अधिक प्रिय होगी । ?

इन कटु वाक्योंको लिखते समय मेरी अन्तरात्मा मुझसे पूछती है कि क्या मैं सर- कारके साथ न्याय कर रहा हूँ। क्या मैं नहीं जानता कि आगरा जेलमें बन्दीगण खासा मजेका जीवन बिता रहे हैं लेकिन तुरन्त ही मेरा मन उत्तर देता है – सभी जेल आगरा जेल नहीं हैं। जो कुछ दिया जाता है, वह छीन भी लिया जाता है । जिसे आसानीसे रोका जा सकता है, उसे तो दबा ही लिया जाता है । पण्डित मोती- लालजी मानो मुझसे कह रहे हैं : " मेरे आरामका महत्त्व ही क्या है, जब कि मेरे पड़ोसीको, सिर्फ इसलिए कि वे एक नामी बैरिस्टर नहीं हैं, वे मामूली सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं जो मुझे प्राप्त हैं !"

सिन्धके बन्दी

एक महान् समाज-सुधारक और सक्खरके प्राण, श्री वीरूमल बेगराजने जब उन्हें सिन्धसे किसी अज्ञात स्थानको ले जाया जा रहा था,[१] लिखा है ।

यह एक बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन है कि कार्यकर्ताओंको जितनी जल्दी गिरफ्तार किया जाता है, नये कार्यकर्त्ता उतनी ही जल्दी उनकी जगह ले लेते हैं। आन्दोलन कितना शक्तिशाली है, यह इसका एक निश्चित प्रमाण है ।

  1. एक पत्रपत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। उसमें बतलाया गया था कि पत्र लेखक और उनके साथियोंको जेल में डाल दिये जानेपर उनके 'युवा मित्र' सारी राष्ट्रीय कार्रवाइयों चालू रखे हुए हैं ।