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  (४) वर्तमान अवस्थामें तो समझौतेका कोई सवाल ही नहीं उठता। अतएव यह सवाल कि पण्डितजी अथवा दूसरे सज्जन क्या करेंगे, यदि अप्रासंगिक नहीं है तो समय के पहले तो अवश्य किया गया है । पर मान लीजिए कि पण्डितजीने ऐसे किसी सम्मेलनका आयोजन किया और उसके प्रस्तावोंपर सरकारने ध्यान न दिया; उस अवस्था में पण्डितजी तथा दूसरे सज्जन वैसा ही कार्य करेंगे जैसा कि ऐसी स्थिति में सभी स्वाभिमानी व्यक्ति करते हैं ।

(५) मैं सविनय अवज्ञाका विचार तो नहीं छोड़ सकता—फिर हिंसाका चाहे कितना ही खतरा क्यों न हो, पर जबतक हिंसाका भय निश्चित रूपसे है, सार्वजनिक सविनय अवज्ञा शुरू करनेका खयाल अलबत्ता में मनसे दूर रखूंगा । व्यक्तिगत स्तरकी सविनय अवज्ञाकी बात कुछ और है ।

(६) किसी भी स्वयंसेवक दलको तोड़ देनेकी कोई बात नहीं है। हाँ, यह बात जरूर है कि यदि हम ईमानदार रहना चाहते हैं तो जो लोग कांग्रेसकी निश्चित प्रतिज्ञाका पालन नहीं करते, उनके नाम अवश्य ही निकाल दिये जायें।

(७) यदि हम अहिंसाके परम आवश्यक अंगोंको अच्छी तरह समझ गये हों, तो हम सिर्फ एक ही नतीजे पर पहुँच सकते हैं। वह यह कि यदि कहीं भी व्यापक हिंसा हो -और इस सन्दर्भ में मैं चौरीचौराको दुर्घटनाको व्यापक कहता हूँ सार्वजनिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन अपने-आप बन्द हो जायेगा । देशके दूसरे कितने ही भागोंने अहिंसाकी भावनाको अपना लिया है यह अच्छी बात है; पर यह इतना काफी नहीं है कि सार्वजनिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन जारी रह सके । यदि एक आदमी भी उपद्रव खड़ा कर दे या हिंसा कार्य कर बैठे तो एक पूरीकी-पूरी अत्यन्त शान्तिपूर्ण सभा में गोलमाल हो उठता है । यही हाल सार्वजनिक सविनय अवज्ञाका है । वह तभी सफल हो सकती है, जब चारों ओर पूर्ण शान्तिमय वातावरण हो । एक ही छोटेसे स्थानमें उसे सीमित रखनेका कारण यही है कि दूसरी किसी जगह हिंसा- का उद्रेक न होने पाये । अतएव इससे यही अर्थ निकलता है कि किसी विशेष स्थानमें सार्वजनिक सविनय अवज्ञा उसी दशा में सम्भव है जब दूसरे तमाम स्थानोंके लोग पूर्ण रूपसे शान्तिमय बने रहें और इस तरह निष्क्रिय रूपसे उसके साथ सहयोग करें ।

और अधिक संख्या में लिखित अखबार

सिख मित्रोंने गुरुमुखी और उर्दू दोनोंमें 'आजाद अकाली' का प्रकाशन आरम्भ किया है। अभी पिछले दिनों मैंने गोहाटीके जिस अखबारकी तारीफ की थी, इनका अखबार उससे भी अधिक पठनीय और अधिक सुन्दर है । इसका हर पृष्ठ बहुत ही साफ है । एक और अखबार है। 'असम कांग्रेस बुलेटिन', जो साप्ताहिक है और तेजपुरसे निकला है । यह सिर्फ अंग्रेजीमें है । इसकी छपाई 'आजाद अकाली' जितनी साफ नहीं है । इन सभी अखवारोंको पढ़नेका समय मुझे नहीं मिल पाता, लेकिन यह देखते हुए कि जबतक इस प्रकार के अखबारोंको लिखने और प्रकाशित करनेका साहस करनेवाले लोग मौजूद हैं तबतक संसारकी कोई भी सरकार इनपर नियन्त्रण नहीं