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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  अब मैं पत्र लेखक प्रश्नोंके उत्तर देता हूँ :

(१) जबतक मुझे स्पष्ट रूपसे यह मालूम न हो जायेगा कि लोग मुझे नेता बनाये रखना नहीं चाहते, तबतक मेरे नेतृत्व छोड़ देनेकी कोई सम्भावना नहीं । ऐसी इच्छा प्रकट करनेकी एक विधि है -कार्य समिति अथवा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीका मेरे निर्णयके खिलाफ मत देना ।

(२) मैं सर्वसाधारणको आश्वस्त करता हूँ कि मेरे इस निर्णय में पण्डित मालवीयजीका बिलकुल हाथ नहीं है । मैंने अक्सर पण्डितजीकी बातें मानी हैं और जब भी मैं उनकी बात मान सका हूँ उससे मुझे आनन्द ही हुआ है; और जब कभी मुझे उनसे मतभेद रखना पड़ा तब-तब मुझे अवश्य दुःख हुआ है; क्योंकि पण्डित मालवीयजीने देशकी अनुपम सेवा की है। वे त्यागकी साक्षात प्रतिमूर्ति हैं । परन्तु सविनय अवज्ञा मुल्तवी करनेका निर्णय तो खुद मैंने ही चौरीचौराकी दुर्घटनाओंका ब्योरा 'क्रॉनिकल' में पढ़कर किया था । बारडोलीसे ही कार्य समितिके सदस्योंकी बैठकें बुलाने के लिए उन्हें तार किये गये और वहींसे मैंने उनपर एक पत्र[१]द्वारा सविनय अवज्ञा स्थगित कर देनेकी अपनी इच्छा प्रकट की थी। इसके बाद पण्डितजीके बुलानेसे मैं बम्बई गया। इसमें सन्देह नहीं कि पण्डितजी तथा मालवीय परिषद्‌के दूसरे मित्र भी मुझसे वहाँ इसीलिए बातचीत करना चाहते थे कि वे मुझे सविनय अवज्ञा स्थगित करने पर राजी कर सकें । सो जब मैंने उन्हें बताया कि अपने तई तो मैं ऐसा करनेका निश्चय कर ही चुका हूँ, लेकिन अभी इस खयालसे इस सम्बन्धमें अन्तिम निर्णय नहीं किया है कि कार्य समितिके सदस्योंसे इस बारेमें पूरी चर्चा कर लूँ, तो उन्हें बड़ी खुशी हुई और आश्चर्य भी । गोलमेज सम्मेलन अथवा किसी समझौतेकी कोई बात इस स्थगनसे सम्बन्ध नहीं रखती । मेरी रायमें तो गोलमेज सम्मेलन निष्फल ही सिद्ध होगा । स्थितिको अच्छी तरह समझने और उसे ठीक-ठीक प्रकट करनेके लिए लॉर्ड रीडिंगसे बहुत ज्यादा मजबूत दिलके वाइसरायकी जरूरत है। बेशक मैं यह अनुभव करता हूँ कि पण्डित मालवीयजी इस आन्दोलनमें शामिल हो चुके हैं। उनके लिए अपनेको कांग्रेससे अथवा खतरेसे दूर रखना सम्भव नहीं है । परन्तु बारडोलीके निर्णयके पीछे किसी भी बाहरी कारणका कोई हाथ नहीं था, वह सिर्फ इसलिए किया गया कि वही उचित था । यदि चौरीचौराकी यह अन्तिम दुर्घटना न हुई होती तो मैं अपने पहले के निश्चयसे कभी न डिगता और अपना निर्णय न बदलता । (३) खुद मुझे तो पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज्यसे जरा भी कममें सन्तोष नहीं हो सकता । और यदि खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंका प्रतिकार नहीं किया गया तो इंग्लैंडसे पूर्ण सम्बन्ध विच्छेदसे कम किसी चीजसे मैं सन्तुष्ट नहीं हो सकता । लेकिन बिलकुल सही स्वरूप क्या होगा यह मुझपर निर्भर नहीं है । मैंने कोई पूर्ण और निश्चित योजना तैयार नहीं की है। वह तो जनताके प्रतिनिधियों द्वारा ही तैयार की जायेगी ।

 
  1. देखिए "पत्र : कार्य समितिके सदस्योंको ", ८-२-१९२२ ।